Skip to main content

Posts

Showing posts from August, 2018

केरल बाढ़ पर पाखंड क्यों?

photo-pti आजकल सोशल मीडिया पर केरल बाढ़ को लेकर एक अलग नजारा देखने को मिल रहा है। प्रत्येक घटना की तरह केरल की इस भीषण बाढ़ में जिसने ना जाने कितने लोगों की जान छीन ली है के बावजूद भी दो गुट बन गए हैं। एक गुट केरल की इस बाढ़ में वहां के लोगों के साथ खड़ा है। वहीं दूसरा गुट अपनी एक अलग किस्म की पहचान बनाते हुए लोगों द्वारा की जा रही मदद के विरोध में खड़ा है। मदद ना करना यह एक अलग पहलू हो सकता है लेकिन जो लोग मदद के लिए  हाथ बढ़ा रहे हैं उनको रोकना एक भयावह स्थिति को प्रकट करता है, जो कि हमारे देश की एकता व अखंडता के लिए बेहतर नहीं है। दरसल सोशल मीडिया पर केरल बाढ़ को लेकर एक अलग किस्म के किस्से गढ़े जा रहे हैं जो ना तो किसी वैज्ञानिक अवधारणा को अपने में समेटे हैं और ना ही वह तार्किक हैं। क्योंकि केरल की बाढ़ का गाय माता से क्या तात्पर्य? आप सोच रहे होंगे यह गाय माता बीच में कहां से आ गई। तो मैं आपको बताता चलूं कि कुछ लोग सोशल मीडिया पर यह अफवाह फैला रहे हैं कि केरल के लोग गाय का मांस खाते हैं इसलिए जो बाढ़ आई है य ह इसी पाप का नतीजा है।  लोग यही नहीं रुके वह इस बाढ़ को सबरीमाला

मीडिया, लोकतंत्र और पत्रकार?

जब हमको लोकतंत्र और मीडिया के बारे में ABCD भी नहीं पता थी, तब  ही हमारे दिमाग में एक शब्द गढ़ दिया गया था। यह सब्द था चतुर्थ स्तंभ जो कि स्वतंत्र मीडिया के लिए था। हमको बचपन से ही यही सिखाया गया कि मीडिया लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है बल्कि यहां तक बताया गया कि जब मीडिया कमजोर होगा तो लोकतंत्र भी कमजोर होगा। यह सही भी है लेकिन क्या वर्तमान या भूतपूर्व की सरकारों ने लोकतंत्र को मजबूत करने में अपना योगदान दिया क्योंकि चाहे वह कांग्रेस की सरकार रही हो, बीजेपी की या क्यों ना कोई क्षेत्रीय पार्टी सभी ने सदैव लोकतंत्र की मजबूती का ही बोल बोला है। अब यदि सभी पार्टियां लोकतंत्र को एक मजबूत स्थिति की ओर ले जाना चाह रही हैं तो जाहिर है कि वह मीडिया को स्वतंत्र रूप से काम करने में भी अपनी टांग नहीं अड़ाना चाहेंगी। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है जो सरकारें हमको दिखाना चाह रही हैं? यदि आपको लगता है ऐसा नहीं है तो जाहिर है मीडिया की स्वतंत्रता खतरे में है, और जब मीडिया खतरे में है तो लोकतंत्र कैसे सुरक्षित रह सकता है? क्योंकि यदि चतुर्थ खंभा डहा तो लोकतंत्र के तीन अन्य खं भे किस रूप में रहेंगे यह