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Showing posts from April, 2018

कठुआ और उन्नाव बनाम समाज

मां मैं जा रही हूं..... शायद आसिफा के यही आखरी शब्द होंगे जब वह अपने घोड़ों को लेकर जंगल की ओर चराने के लिए गई होगी। कौन जानता था कि अब वह कभी भी लौट के नहीं आएगी? कौन जानता था कि उसके साथ एक पवित्र जगह पर इतना जघन्य अपराध किया जाएगा? एक 8 साल की मासूम बच्ची जिसको अभी अपना बायां और दायां हाथ तक पता नहीं था उसके साथ 8 दिनों तक एक पवित्र जगह पर ऐसा खेल खेला गया कि पूरी मानवता ही शर्मशार हो गई। वह मर ही गई थी लेकिन अभी कुछ बाकी था। अभी वह पुलिसवाला अपनी हवस को मिटाना चाहता था... रुको रुको अभी मारना नहीं मुझे भी हवस बुझानी है। यह खेल ही था जिसमें कुछ दरिंदे थे और एक मासूम बच्ची। जाहिर है कठुआ की खबर जैसे ही देश में फैली वह लोगों के रोंगटे खड़े कर गई। लेकिन इसके बाद भी कुछ तथाकथित हिंदुत्ववादी लोग उन दरिन्दों के  बचाव में  सड़कों पर उतर आए जिन्होंने 8 साल की मासूम बच्ची के साथ ड्रग्स देकर बलात्कार किया। शायद वह उस बच्ची में धर्म तलाश कर रहे थे जो अभी मंदिर मस्जिद को ही सही मायने में नहीं पहचान पायी थी। पहचानती भी कैसे अभी तो वह वोट देने के काबिल भी नहीं हुई थी। मैंने भी जब खबर देखी तो मन म

जाति और भारत

जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और अरुणाचल से लेकर राजस्थान तक फैले भारत में सैकड़ों जातियों का निवास है। जाति भारतीय व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है।वर्तमान में आप बिना जाती व्यवस्था के भारत की कल्पना शायद नहीं कर पाएंगे। भारत की जाति व्यवस्था ने हिन्दू जीवन शैली के साथ-साथ मुस्लिम और ईसाई धर्म को भी प्रभावित किया है।                इतिहास की बात की जाए तो प्राचीन व्यवस्था में जाति का कोई अस्तित्व नहीं था। घुमक्कड़ी जीवन से जब मनुष्य स्थायी जीवन की ओर अग्रसर हुआ तब व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ परिवर्तन करने पड़े।इसी क्रम में वर्ण व्यवस्था भी अस्तित्व में आयी। वर्ण व्यवस्था में काम के आधार पर लोगों को एक दूसरे से पृथक किया गया। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय लोकतांत्रिक व्यवस्था विद्यमान थी अतः किसी भी कार्य को करने के लिए लोग स्वतंत्र थे। इसप्रकार एक सामाजिक व्यवस्था ने जन्म ले लिया होगा। यहाँ यह प्रश्न दिमाक में आता है कि क्या कोई मनुष्य स्वेछा से किसी काम को करने लिए स्वयं राजी हो गया होगा या फिर उसे मजबूर किया गया ? यदि मनुष्य स्वेच्छा से किसी काम को करने के लिए तैय

खेल अंको का !

वर्तमान में पूरा विश्व एक भागदौड़ भरी व्यवस्था में जकड़ता चला जा रहा है। सभी चाहते हैं कि वह जल्दी से जल्दी तरक्की कर अपना जीवन उच्च पैमाने पर स्थापित कर लें। यह उच्च पैमाना शायद ही किसी के लिए नैतिकता, परोपकार, या सामाजिक पहलू के इर्द-गिर्द घूमता हो क्योंकि वर्तमान वातावरण को देखते हुए यही लग रहा है कि सभी डेटा के पैमाने पर ही अपने को ऊंचा स्थापित करना चाहते हैं। इसमें कोई अपने Facebook फॉलोवर्स बढ़ाना चाहता है तो कोई लाइक,कमेंट बढ़ने पर ही खुश हो जाता है। यह सब व्यवस्था जो चल रही है वह कोई नई नहीं है बस साधन और तरीके बदल गए हैं। बचपन की वह घटना भी एक डेटा रूपी ही खेल था जब पहली बॉल पर आउट होने वाली बॉल को ट्राई बॉल बना कर 1 ओवर के डेटा को 6 की जगह 7 कर देते थे। हम उसको हमेशा खेल-खेल में ही लेते रहे हैं। अब यही खेल यदि कॉर्पोरेट सेक्टर से लेकर हमारी सरकारें भी करने लगी हैं तो भला हमें बुरा क्यों लगना चाहिए। एक खेल ही तो है जिसमें जीरो और दशमलव के इधर-उधर होने से करोड़ों लोगों के जीवन यापन पर प्रभाव पड़ता है। इसी को देखते हुए सरकार भी अब ट्राई बॉल का मजा लेना चाह रही है। वह भी देखन