Skip to main content

Posts

Showing posts from March, 2018

मृतक का बैंक में जमा पैसा कैसे जानें?

आर्थिक नीतियों के बदलाव के पश्चात बैंकिंग प्रणाली कहीं ना कहीं हमारे लिए अति आवश्यक हो गई है। इसी बैंकिंग प्रणाली को लेकर तब कई सारे प्रश्न दिमाक में उठते हैं जब किसी खाता धारक की मृत्यु हो जाती है। जैसे मृत्यु के पश्चात बैंक खाते का क्या होता है ? क्या पैसा बैंक का हो जाता है? क्या बैंक उस पैसे को व्यक्ति के परिवार के किसी सदस्य को दे देता है? या फिर उसको किसी फंड में जमा कर दिया जाता है? दरअसल यह पैसा उसी अकाउंट में पड़ा रहता है और एक लंबे समय अंतराल के पश्चात ऐसे अकाउंट को निष्क्रिय घोषित कर दिया जाता है। कुछ दिन पहले भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट सामने आई जिसके अनुसार बैंकों में हजारों करोड़ रुपए ऐसे पड़े हैं जिनका कोई दावेदार ही नहीं है। ऐसा उन स्थितियों में होता है जब किसी खाता धारक की मृत्यु हो जाती है या फिर किसी के बहुत से बैंकों में खाते होते हैं। मौत होने की स्थिति में नॉमिनी पैसों के लिए दावा तो कर सकता है लेकिन कई बार नॉमिनी को खाते के बारे में जानकारी ही नहीं होती है। और यदि जानकारी होती भी है तो कुछ दस्तावेजों की कमी के वजह से भी दावा नहीं हो पाता है।भारतीय रिजर्व

क्या कांग्रेस महाधिवेशन से 2019 की नैया पार कर पाएगी?

2014 के लोकसभा चुनाव के पश्चात देश में केवल और केवल बीजेपी पार्टी ही नजर आ रही है खासकर उत्तर भारत में। जब भी किसी राज्य में चुनाव होते हैं तो  हमारे प्रधानमंत्री की रैलियों से वहाँ का पूरा वातावरण एक रंगीन माहौल में तब्दील हो जाता है। इस रंगीन माहौल को चुनाव परिणाम आने के पश्चात डिजिटल मीडिया और भी शानदार बना देता है। कई सारे टीवी एंकर बहस का एक तड़का भरा प्रोग्राम लेकर आ जाते हैं। एक घंटे रूपी इस धारावाहिक  प्रोग्राम में खूब शोर शराबा करते हैं। घर का बुजुर्ग चाय की चुस्की के साथ अपने को सक्रिय राजनीति में महसूस करता हुआ पाता है। और यदि इस समय घर की किसी महिला सदस्य का धारावाहिक प्रोग्राम प्रसारित हो रहा हो तो पूरी सक्रिय राजनीति घर की चारदीवारी में ही प्रारंभ हो जाती है। हाल ही में हुए उत्तर पूर्वी क्षेत्र के चुनाव नतीजों को लेकर जब टीवी शो पर जंग छिड़ी तब धारावाहिक प्रोग्राम लेकर आए एंकर साहब बड़े ही प्यार से भारत के नक्शे को एक रंगीन रूप में समाहित करने का प्रयास कर रहे थे। वह साहब बता रहे थे कि कितना क्षेत्र बीजेपी पार्टी के अधीन आ गया है? कितनी जनसंख्या पर अब वह शासन कर रही ह

महिला सशक्तिकरण के मायने!!

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में जब कुछ बुद्धजीवियों द्वारा महिलावादी उपागम को मजबूती के साथ समाज में फैलाने का काम प्रारंभ किया गया। तो शायद सबको लगा होगा कि अब महिलाओं की स्थिति बदल जाएगी। अब वह समाज में व्याप्त स्त्री-पुरुष के भेदभाव से दूर हो जाएगी। अब वह अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर पाएगी। अब वह संपत्ति पर अपना हक जमा पाएगी। परंतु इतने सालों में महिला सशक्तिकरण के लिए किए गए कार्यों के पश्चात भी क्या कुछ बदला? आज भी भाषणों, किताबों, लेखों में सिर्फ बातें ही होती हैं और वास्तविक स्थिति एक भिन्न प्रकार से बदल रही है। इस स्थिति को हम 1 साल पहले आई संजय दत्त की भूमि फिल्म से समझ सकते हैं। इस फिल्म में संजय दत्त अपनी बेटी को बेटे से कमतर बिल्कुल नहीं मानता परंतु सामाजिक व्यवस्था के आगे वह बेबस हो जाता है। इस फिल्म ने भारतीय परम्परा की कुछ ना हजम होने वाली बातों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है। इसमें दिखाया गया है कि जहां हम एक ओर स्त्री को देवी मानकर पूजा करते हैं वहीं दूसरी ओर गणेश जी की आरती "बांझन को पुत्र दे निर्धन को माया" में स्त्री को अत्

PNB घोटाला और नीरव वापसी का जुमला

ब्रिटिश राज से जब हम आजाद भारत में प्रवेश हुए तब समानता रूपी अवधारणा प्रमुख थी। इसी अवधारणा को आधार बनाते हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाग तीन में मूल अधिकार के तहत सबको समानता प्रदान करने का प्रयास किया। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व कानूनी रूपी समानता की बात राजनेता से लेकर न्यायाधीशों की जुबान पर रहती है। परंतु जमीनी हकीकत में स्थिति अत्यंत भिन्न प्रकार से देखने को मिलती है। जब कोई साधारण व्यक्ति किसी बैंक से लोन लेने का प्रयास करता है तो उसको प्रारंभिक स्थिति से लेकर लोन प्राप्त होने की स्थिति के बाद तक अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ता है। बैंक मैनेजर से लेकर बैंक के चपरासी तक उस व्यक्ति को निचोड़ने में लग जाते हैं। बमुश्किल ही सही यदि लोन किसी प्रकार पास भी हो गया तो उसके पश्चात व्यक्ति का जीवन दोहरे डर में प्रारंभ हो जाता है। एक डर बैंक के पैसे को लौटाने का, जो व्यक्ति के जगने के साथ-साथ उसके नींद तक में समा जाता है और दूसरा डर व्यक्ति को सामाजिक तौर पर तोड़ने का काम प्रारम्भ कर देता है। डर हो भी क्यों ना क्योंकि 6 महीने के अंदर बैंक के कर्मचारी बीस हजार र