झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो , सरकारी ऐलान हुआ है सच बोलो । राहत इंदौरी की यह पंक्तियां भला कौन भूल सकता है। और खासकर आज के दौर में तो बिल्कुल ही नहीं जब सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आदि सभी पहलू अपने नैतिकता नामक वस्त्र को छोड़ रहे हैं। यदि हम राहत इंदौरी की इन पंक्तियों को भारतीय राजनीति और भारतीय नेताओं से जोड़ दें तो किसी को अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे तो राजनीति में झूठ एक कारगर हथियार होता है लेकिन भारतीय राजनीति के मामले में यह परमाणु हथियार का काम करता है। यदि भारतीय राजनीति के इतिहास की बात करें तो प्राचीन काल में हम जा सकते हैं लेकिन फिलहाल स्वतंत्रता आंदोलन के पश्चात की राजनीति को ही देखने का प्रयास करते हैं। भारतीय लोकतंत्र की शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन से ही उभरी जो की नैतिकता से ओतप्रोत थी । जाहिर है आगाज बहुत बेहतरीन हुआ परंतु जैसे-जैसे यह आगे बढ़ता गया नए नए रास्ते निकलने लगे चुनाव जीतने के। इन तरीकों में राजनेताओं को सबसे ज्यादा जो तरीका भाया वह है झूठ का। राजनीति शास्त्र को जब हम एक विषय के रूप में पढ़ते हैं तो उसमें कई सारे उपविषय होते हैं जिनमे...
एक बेहतर नज़रिये के साथ..... सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक लेख से परिपूर्ण।।