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PNB घोटाला और नीरव वापसी का जुमला



ब्रिटिश राज से जब हम आजाद भारत में प्रवेश हुए तब समानता रूपी अवधारणा प्रमुख थी। इसी अवधारणा को आधार बनाते हुए हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान के भाग तीन में मूल अधिकार के तहत सबको समानता प्रदान करने का प्रयास किया। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व कानूनी रूपी समानता की बात राजनेता से लेकर न्यायाधीशों की जुबान पर रहती है। परंतु जमीनी हकीकत में स्थिति अत्यंत भिन्न प्रकार से देखने को मिलती है। जब कोई साधारण व्यक्ति किसी बैंक से लोन लेने का प्रयास करता है तो उसको प्रारंभिक स्थिति से लेकर लोन प्राप्त होने की स्थिति के बाद तक अनेक प्रकार की समस्याओं से जूझना पड़ता है। बैंक मैनेजर से लेकर बैंक के चपरासी तक उस व्यक्ति को निचोड़ने में लग जाते हैं। बमुश्किल ही सही यदि लोन किसी प्रकार पास भी हो गया तो उसके पश्चात व्यक्ति का जीवन दोहरे डर में प्रारंभ हो जाता है। एक डर बैंक के पैसे को लौटाने का, जो व्यक्ति के जगने के साथ-साथ उसके नींद तक में समा जाता है और दूसरा डर व्यक्ति को सामाजिक तौर पर तोड़ने का काम प्रारम्भ कर देता है। डर हो भी क्यों ना क्योंकि 6 महीने के अंदर बैंक के कर्मचारी बीस हजार रुपए के बदले व्यक्ति के दरवाजे पर जो आ टपकते हैं। डर का परिणाम यह होता है कि व्यक्ति  अवसाद में चला जाता है और अपने जीवन को समाप्त करना ज्यादा सहज समझता है। यही डर था कि जब हम होली के करीब जा रहे थे तभी 27 फरवरी को बुंदेलखंड से यह खबर आई कि वहां 2 किसानों ने मौत को गले लगा लिया क्योंकि लहलहाती फसल जो उनको कुछ दे पाती वह मवेशी चर गए।
                                  अब बात करते हैं शाइनिंग इंडिया के दूसरे रूप की जिसमें अनेक चेहरे अपनी शान शौकत से सबको चकित करते रहते हैं। करें भी क्यों ना हजारों करोड़ों का घपला जो करते रहते हैं। इन्हीं लोगों में नीरव मोदी और मेहुल चोकसी का नाम आज हर गली चौराहे में चर्चा का विषय बना हुआ है। इन महाशय साहब की कंपनी ने देश का लगभग 11400 करोड रुपए जो अब 12700 करोड बताया जा रहा है का गबन कर दिया। दरसल नीरव मोदी और  चोकसी की कंपनी पंजाब नेशनल बैंक की मुम्बई शाखा से लेटर ऑफ अंडरटेकिंग प्राप्त कर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से यह पैसा कर्ज के रूप में लेती रही। परंतु यह पैसा जिस कार्य के लिए लिया गया था उस कार्य में नहीं लगाया गया। अतः यहीं से घोटाले की पूरी कार्य योजना प्रारंभ कर दी जाती है। पैसा बैंक से तो लिया जाता है परंतु कंपनी के कार्यों में नहीं लगाया जाता है यह अन्यत्र किसी अन्य जगह इन्वेस्ट किया जाता है। और जब कंपनी डूबने लगती है तो इस प्रकार के घोटाले सामने आने लगते हैं जिसमें देश की जनता के मेहनत का पैसा कुछ चुनिंदा लोग हजम कर जाते हैं।
                                 अब जबकि 70 साल में बैंक से संबंधित यह सबसे बड़ा घोटाला है तो जाहिर है राजनीति तो अवश्य होगी। कांग्रेस और बीजेपी जैसी राष्ट्रीय पार्टियाँ आपस में आरोप प्रत्यारोप लगा रहीं हैं। परंतु आरोप प्रत्यारोप लगाने से क्या देश का पैसा वापस आ जाएगा? क्या घोटाले होने बंद हो जाएंगे? क्या नीरव मोदी पकड़ा जाएगा? क्या उसको सजा मिलेगी? क्या एनपीए की समस्या सुलझेगी? यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिन पर राजनीतिक पार्टियाँ अपने विचार रखने से सदैव बचती रहती हैं। घोटाला अवश्य 2011 से प्रारंभ हुआ था परंतु वह पौधा था, उसको एक वृक्ष बनाने का काम मोदी सरकार के कार्यकाल में हुआ। इसलिए 4 साल का शासन करने के पश्चात जवाबदेहिता भी मोदी सरकार की ज्यादा बनती है। यदि घोटाला कांग्रेस के समय पर हुआ था तो राजग सरकार ने अभी तक क्यों कोई कार्यवाही नहीं की? जाहिर है कि उद्योगपतियों का वर्चस्व सरकार पर हावी रहता है जो संपूर्ण शासन प्रणाली को प्रभावित करते रहते हैं। इन सबके बीच हमारी सांविधिक और संवैधानिक एजेंसियों का काम राजनीतिक पार्टियों से अलग देश की शासन प्रणाली को एक बेहतर स्थिति में लाना है। परंतु पंजाब नेशनल बैंक घोटाले में वह भी अपने कर्तव्य से विमुख रहीं। यदि लेटर ऑफ अंडरटेकिंग जारी किए जाते हैं तो उनका प्रत्येक साल में रिन्यू होना आवश्यक होता है जो कि बिना बोर्ड की सहमति के नहीं हो सकता।इसके साथ ही लेटर ऑफ अंडरटेकिंग के आधार पर लिया गया पैसा 90 दिन के अंदर वापस करने का प्रावधान है। अब जबकि इतने प्रावधान हैं तो कोई भी व्यक्ति बिना नियममन प्रक्रिया के 6 साल तक कैसे पैसा निकाल सकता है? जाहिर है इसके ऊपर सिर्फ एक या दो लोगों का हाथ नहीं बल्कि पूरी एक चेन काम कर रही है। वरना क्या वजह थी कि 90 दिन के अंदर विदेश में स्थित भारतीय बैंक ने पंजाब नेशनल बैंक से संपर्क करके अपना पैसा वापस क्यों नहीं मांगा?☺
                            इस घोटाले के कारण आम जनता में सरकार की नकारात्मक छवि बन रही थी अतः यह अत्यंत आवश्यक हो गया था कि उसको दूर किया जाए। इसीलिए हमारे वित्तमंत्री जी ने एक प्रेस वार्ता की और उसमें उन्होंने कहा कि नीरव मोदी जिस भी देश में होगा वहां से लेकर आएंगे। वित्त मंत्री जी को अपने इस वाक्य में अवश्य आत्मविश्वास होगा परंतु आम जनता असहज ही महसूस कर रही है। आम जनता असहज महसूस करे भी क्यों ना, ललित मोदी से लेकर माल्या जैसे लोग हजारो करोड़ रुपए जो लेकर भाग गए वह तो अभी पकड़े नहीं गए। बहरहाल आम जनता का जो भी पक्ष हो परंतु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी देश से अपराधी को लाना या किसी भी देश को सौंपना एक प्रत्यर्पण संधि के तहत होता है। बताते चलें कि भारत की प्रत्यर्पण संधि दुनिया के 50 देशों के साथ ही है और इनमें भी अलग-अलग प्रावधान हैं। अब यदि नीरव मोदी इन 50 देशों के अलावा किसी अन्य देश में है तो भारत का क्या रुख होगा? क्या हमारे वित्तमंत्री वहां से उसको पकड़ कर ले आएंगे?

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