Skip to main content

मालदीव संकट और भारत।

शासन प्रणाली के सभी रूप अपने आप में एक बेहतर व्यवस्था को बनाने की बात करते हैं। परंतु लोकतंत्र शासन व्यवस्था का एक ऐसा उदाहरण है जो सभी में बेहतर है इसका  कारण शायद इस व्यवस्था में जनता को दिए गए ज्यादा से ज्यादा अधिकार व प्रदान की गई सकारात्मक स्वतंत्रता है। बेहतर होने के बावजूद दुनिया के कई देशों में आज भी लोकतंत्र स्थापित नहीं हो पाया है। इन देशों में खासकर मुस्लिम बहुल जनसंख्या वाले देश आते हैं और उनमें भी खाड़ी देश सबसे ऊपर। इसी का एक उदाहरण छोटे से द्वीप समूह से निर्मित मालदीव का है जो लोकतंत्र के अपने नवजात रूप में पनपना प्रारंभ ही हुआ था कि यहां के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन द्वारा लगाए गए आपातकाल ने नवजात को पनपने में अड़ंगा लगा दिया।
                              दरसल अब्दुल्ला यमीन द्वारा 5 फरवरी 2018 को 15 दिन के लिए मालदीव में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। इससे मालदीव का चला आ रहा राजनीतिक संकट और गहरा गया। भारतीय विदेश मंत्रालय ने भी अपने नागरिकों को मालदीव की अनावश्यक यात्रा टालने का सुझाव दिया और मालदीव में भारतीय प्रवासियों के लिए भी अलर्ट जारी किया है। यदि बात की जाए मालदीव के लोकतंत्र के विकास की तो सर्वप्रथम सन 2008 में मोहम्मद नशीद लोकतांत्रिक तरीके से चुने जाने वाले पहले राष्ट्रपति थे जिन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला गयूम को हराया था। 2012 में एक न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर उन्हें जेल में डालने पर मोहम्मद नशीद को अपदस्थ कर दिया गया  और इसके बाद वर्तमान राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन 2013 में हुए चुनाव में विजय होने के बाद से सत्ता पर काबिज हैं। बताते चलें कि चुनाव के परिणाम पर अभी भी संशय बना हुआ है। अब्दुल्ला यमीन के राष्ट्रपति बनने के पश्चात मालदीव का राजनीतिक संकट और गहराता चला गया। 2013 से अब तक यामीन ने अपने विरोधियों का एक-एक करके सफाया किया और लोकतंत्र के लिए अत्यंत आवश्यक विपक्ष का नामोनिशान ही मिटा दिया। इसी घटनाक्रम में सन 2015 में पूर्व राष्ट्रपति नसीब को आतंकवाद के आरोप में 13 साल की सजा सुनाई गई जिस पर अभी तक कोई ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराए जा सके हैं।मोहम्मद नशीद वर्तमान में निर्वाचित की जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं। हालिया घटनाक्रम में  सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को पलटते हुए मोहम्मद नशीद को निर्दोष बताया। इसके साथ ही  उनको तथा  राजनीतिक कैदियों को रिहा करने का आदेश भी दिया। यही वजह थी मालदीव में आपातकाल की  क्योंकि नशीद एक प्रभावशाली नेता हैं और इनके रिहा होने से यामीन की कुर्सी खतरे में पड़ जाती। अतः वर्तमान राष्ट्रपति यामीन अपनी सारी मर्यादाओं को तोड़ते हुए एवं अपने पद का दुरुपयोग करते हुए सेना को ना केवल नसीब को गिरफ्तार करने का आदेश दिया बल्कि उस जज को भी अदालत परिसर से गिरफ्तार करवा लिया जिसने भूतपूर्व राष्ट्रपति के रिहाई का आदेश दिया था। इन गिरफ्तारियों ने लोकतंत्र के उड़ने वाले परों को जड़ तक कुतरने का काम किया भारत से लेकर संयुक्त राष्ट्र संघ तक सकते में आ गया।
                          भारत के संदर्भ में मालदीव की बात की जाए तो इसकी स्थिति भारत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। हिन्द महासागर में भले ही यह छोटा सा देश है परंतु इसकी स्थिति इसको महत्वपूर्ण बना देती है। शुरू से ही मालदीव भारत के पक्ष में रहा है परंतु वर्तमान राष्ट्रपति के शासन काल के दौरान इस देश पर चीन का ज्यादा से ज्यादा प्रभाव पड़ा है। इसके दो कारण हो सकते हैं जिसमें पहला भारत का मालदीव को लेकर ढीला रवैया और दूसरा चीन की कूटनीतिक चाल। चीन का मालदीव में ज्यादा से ज्यादा हस्तक्षेप बढ़ रहा है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि माले एयरपोर्ट को पहले विकसित करने का ठेका एक भारतीय कंपनी को मिला था परंतु बाद में यह चीनी कंपनी के झोले में चला गया इसके साथ ही चीन अपनी सबसे महत्वपूर्ण परियोजना वन बेल्ट वन रोड में भी मालदीव को लाने में सफल हुआ है। भारत के रवैये की बात की जाए तो तीन साल पहले  भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा मालदीव की यात्रा रद्द करने से यह संकेत अवश्य गया होगा कि मालदीव पूरे दक्षिण एशिया और हिंद महासागर क्षेत्र में एकमात्र ऐसा देश है जहां की भारतीय नेतृत्व द्वारा यात्रा नहीं की गई।  इसके अतिरिक्त मालदीव ने राष्ट्रमंडल की सदस्यता त्याग दी है और सार्क संगठन भी अपनी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पा रहा है जिससे मालदीव में भारत का प्रभाव और सीमित हो गया है। यामीन की सरकार पर भी आरोप लगे हैं कि इनके शासनकाल में मालदीव भारत विरोधी, चीन समर्थक एवं कट्टरपंथी जिहादियों का गढ़ बनता गया है। अब जबकि इतना सब कुछ हो रहा है तो क्या भारत सीधी कार्यवाही करने में सक्षम है? यह सवाल सभी के मस्तिष्क में अवश्य उभर रहा होगा क्योंकि इसके पहले राजीव गांधी सरकार ने 1988 में मालदीव में आए संकट को दूर करने के लिए भारतीय सेना के द्वारा सीधी कार्यवाही की थी। परंतु आज जैसे भारत बोलता है कि हम 1962 के दौर में नहीं है वैसे ही मालदीव के सामाजिक, आर्थिक , और राजनीतिक पहलू भी बदल चुके हैं। वर्तमान में चीन की कई परियोजनाएं मालदीव में काम कर रही हैं यदि हम सीधी कार्रवाई करते हैं तो इससे चीन अपना सीधा हित जोड़ लेगा और वह कई प्रकार से भारत पर दबाव बनाना प्रारंभ कर देगा। इससे भारत को पुनः डोकलाम जैसे विवादों में उलझना पड़ सकता है। शायद यही कारण है कि आज सीधी कार्रवाई का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। भारत को केवल कूटनीतिक तौर से ही इस मसले को हल करने का प्रयास करना चाहिए। इसके साथ ही भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से ठोस कार्रवाई किए जाने की अपेक्षा रखनी चाहिए ताकि मालदीव को संवैधानिक संकट से बचाया जा सके। इसके अलावा भारत को यह प्रयास करना चाहिए कि मालदीव में होने वाले चुनाव निष्पक्ष तोर से हों। यदि ऐसा हो पाता है तो आने वाले समय में मालदीव का ना केवल राजनीतिक संकट ही दूर होगा बल्कि एक बेहतर सरकार के आने से भारत को भी फायदा होगा।

Comments

Popular posts from this blog

कठुआ और उन्नाव बनाम समाज

मां मैं जा रही हूं..... शायद आसिफा के यही आखरी शब्द होंगे जब वह अपने घोड़ों को लेकर जंगल की ओर चराने के लिए गई होगी। कौन जानता था कि अब वह कभी भी लौट के नहीं आएगी? कौन जानता था कि उसके साथ एक पवित्र जगह पर इतना जघन्य अपराध किया जाएगा? एक 8 साल की मासूम बच्ची जिसको अभी अपना बायां और दायां हाथ तक पता नहीं था उसके साथ 8 दिनों तक एक पवित्र जगह पर ऐसा खेल खेला गया कि पूरी मानवता ही शर्मशार हो गई। वह मर ही गई थी लेकिन अभी कुछ बाकी था। अभी वह पुलिसवाला अपनी हवस को मिटाना चाहता था... रुको रुको अभी मारना नहीं मुझे भी हवस बुझानी है। यह खेल ही था जिसमें कुछ दरिंदे थे और एक मासूम बच्ची। जाहिर है कठुआ की खबर जैसे ही देश में फैली वह लोगों के रोंगटे खड़े कर गई। लेकिन इसके बाद भी कुछ तथाकथित हिंदुत्ववादी लोग उन दरिन्दों के  बचाव में  सड़कों पर उतर आए जिन्होंने 8 साल की मासूम बच्ची के साथ ड्रग्स देकर बलात्कार किया। शायद वह उस बच्ची में धर्म तलाश कर रहे थे जो अभी मंदिर मस्जिद को ही सही मायने में नहीं पहचान पायी थी। पहचानती भी कैसे अभी तो वह वोट देने के काबिल भी नहीं हुई थी। मैंने भी जब खबर देख...

.....प्रयोग प्रशासन में?

प्रयोग शब्द अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है। इसी शब्द के माध्यम से विश्व को अनेक नए आयाम देखने को मिले। वह प्रयोग ही था जब हमने पोखरण फतह किया, वह प्रयोग ही था जब मनुष्य चांद पर गया, वह प्रयोग ही था जब एडिशन नौकरानी को कीड़ों का बना आमलेट खिला रहा था। इन सभी प्रयोगों को यदि ध्यान में रखकर किसी से पूछा जाए तो वह सफल ही कहेगा, भले ही पोखरण जैसे प्रयोगों से कितने ही इंसानों का जीवन खतरे में पड़ गया हो,भले ही एडिशन की नौकरानी बीमार पड़ गई हो। आज जब भारतीय प्रशासन में नए प्रयोग की बात कही जा रही है तो कई विद्वान इसको भी भारत के लिए सही कदम बता रहे हैं परंतु क्या वास्तव में यह प्रयोग भी पोखरण के प्रयोग की तरह अपनी कमियों को छुपा पाएगा ? यह भी एक पहेली है।                                  दरसल केंद्र सरकार नौकरशाही को लेकर एक अहम प्रयोग करने जा रही है। इस प्रयोग के जरिए लैटेरल एंट्री के माध्यम से भी लोग उच्च प्रशासनिक सेवा में जा स...

झूठा लोकतंत्र ही सही लेकिन लोकतंत्र तो है।

झूठों ने झूठों से कहा है सच बोलो , सरकारी ऐलान हुआ है सच बोलो । राहत इंदौरी की यह पंक्तियां भला कौन भूल सकता है। और खासकर आज के दौर में तो बिल्कुल ही नहीं जब सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आदि  सभी पहलू  अपने नैतिकता नामक वस्त्र को छोड़ रहे हैं। यदि हम राहत इंदौरी की इन पंक्तियों को भारतीय राजनीति और भारतीय नेताओं से जोड़ दें तो किसी को अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए। वैसे तो राजनीति में झूठ एक कारगर हथियार होता है लेकिन भारतीय राजनीति के मामले में यह परमाणु हथियार का काम करता है। यदि भारतीय राजनीति के इतिहास की बात करें तो प्राचीन काल में हम जा सकते हैं लेकिन फिलहाल स्वतंत्रता आंदोलन के पश्चात की राजनीति को ही देखने का प्रयास करते हैं। भारतीय लोकतंत्र की शुरुआत स्वतंत्रता आंदोलन से ही उभरी जो की नैतिकता से ओतप्रोत थी । जाहिर है आगाज बहुत बेहतरीन हुआ परंतु जैसे-जैसे यह आगे बढ़ता गया नए नए रास्ते निकलने लगे चुनाव जीतने के। इन तरीकों में राजनेताओं को सबसे ज्यादा जो तरीका भाया वह है झूठ का। राजनीति शास्त्र को जब हम एक विषय के रूप में पढ़ते हैं तो उसमें कई सारे उपविषय होते हैं जिनमे...

कासगंज का सच?

अक्सर लोगों द्वार यह सुनने को मिलता है कि अमेरिका का लोकतंत्र सबसे पुराना तो है लेकिन भारत का लोकतंत्रीय स्वरूप नया होते हुए भी दुनिया को एक मिसाल पेश कर रहा है। यहां इतनी विविधता के होते हुए भी लोग लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाते जा रहे हैं। आपस में कदम से कदम मिलाकर यहां के लोग भारत को ना केवल जमीन पर बल्कि अंतरिक्ष तक विश्व के सामने एक बेहतरी के साथ खड़ा कर रहे हैं । परंतु कुछ उपद्रवी लोगों द्वारा समाज में एक दूसरे के प्रति नफरत पैदा कर देश को पीछे धकेलने का काम किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य के कासगंज में भी कुछ उपद्रवियों द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर माहौल को खराब करने की कोशिश की गई और वह थोड़े बहुत कामयाब भी हुए। ये उपद्रवी केवल एक धर्म या जाति में नहीं हैं बल्कि प्रत्येक जगह कुछ मात्रा में मिल जाते हैं जो कि पूरे  समाज को नकारात्मक दिशा की ओर मोड़ देते हैं।                                   गणतंत्र दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश के कासगंज में कुछ ऐसा ही देखने को मिला जहां  ...

2G घोटाला औए सीबीआई

समय के साथ परिवर्तन सकारात्मक दिशा में होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। 7 साल में हमारे देश के अंदर संचार क्षेत्र में एक क्रांति देखने को मिली हम 2 जी से 4जी चलाकर आनंद लेने लगे परं...

गंगा सफाई और नई परियोजनाएं

नव वर्ष 2018 के शुरुआत में जब ठंड अपने चरम बिंदु की ओर अग्रसर है तो वहीं गंगा जैसी तमाम नदियां अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं। अमूमन दिसंबर-जनवरी के समय गंगा वाराणसी में संतोषजनक जल स्तर के साथ बहती है । लोग नए साल का शुभारंभ गंगा में डुबकी लगाकर करते हैं परंतु साल 2018 के आगमन में ही वाराणसी के घाट जल से दूर हो गए हैं। वाराणसी में गंगा, घाट से करीब 30 फिट दूर बह रही है। जिन नदियों के किनारे सिंधु से लेकर मिस्र जैसी दुनिया की बड़ी-बड़ी सभ्यताएं पली-बढ़ी उन्हीं जीवन रूपी नदियों का लोग ऐसा हाल कर देंगे यह विचलित कर देता है । खासतौर पर तब और ज्यादा जब गंगा जैसी नदियों का , जिनको भारत के बुद्धजीवियों ने आस्था के साथ जोड़ा था। उन्होंने शायद यह नहीं सोचा होगा की आस्था के नए रुप भी आने वाली पीढ़ी निकाल लेगी। बहरहाल जो भी हो हालात अत्यंत दुश्वारियों से सुशोभित हो चुके हैं।                      90 के दशक में जब गंगा की हालत अत्यंत बुरी होने लगी तब सरकार का ध्यान इस ओर गया। सन 1986 में जब ...

पत्थरबाज और कश्मीर

स्वर्ग के नाम से मशहूर कश्मीर वर्तमान में पत्थर फेंकने वाले लोगों से गुलजार नजर आता है। स्वतंत्रता के पश्चात वर्तमान तक कश्मीर में कभी भी स्थाई शांति देखने को नहीं मिली ।  कुछ समय शान्ति रहने के पश्चात घाटी ओखी  चक्रवात की तरह ऊफान मारने लगती है। अलगाववादी पुनः सक्रिय हो जाते हैं तथा नौजवानों , बच्चों से लेकर महिलाएं पत्थरबाजों की टोली में शामिल हो जाती हैं। इन सब घटनाओं के पीछे सभी के अपने-अपने दृष्टिकोण हो सकते हैं परंतु यह सत्य है कि सृष्टि का प्रत्येक मानव अपने जीवन में सुख शांति चाहता है, फिर ये लोग अपनी जान हथेली पर डालकर क्यों पत्थर फेंकते हैं ,सोचने पर मजबूर कर देता है।।                                साल 2011 में भारत सरकार ने कश्मीरी युवकों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना चालू की थी। इस छात्रवृत्ति योजना में 5000 कश्मीरी युवकों को  प्रत्येक वर्ष देश के अन्य हिस्सों में उच्च श...

क्या आपका आधार सुरक्षित है?

आज से कोई 7 साल पहले जब 2010 में आधार कार्ड बनने प्रारंभ हुए तब बड़ी उत्सुकता से लोगों ने अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराई। तब शायद किसी के मस्तिष्क में यह प्रश्न उठा हो कि उंगलियों ...

जाति और भारत

जम्मू कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और अरुणाचल से लेकर राजस्थान तक फैले भारत में सैकड़ों जातियों का निवास है। जाति भारतीय व्यवस्था का एक अभिन्न अंग है।वर्तमान में आप बिना जाती व्यवस्था के भारत की कल्पना शायद नहीं कर पाएंगे। भारत की जाति व्यवस्था ने हिन्दू जीवन शैली के साथ-साथ मुस्लिम और ईसाई धर्म को भी प्रभावित किया है।                इतिहास की बात की जाए तो प्राचीन व्यवस्था में जाति का कोई अस्तित्व नहीं था। घुमक्कड़ी जीवन से जब मनुष्य स्थायी जीवन की ओर अग्रसर हुआ तब व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ परिवर्तन करने पड़े।इसी क्रम में वर्ण व्यवस्था भी अस्तित्व में आयी। वर्ण व्यवस्था में काम के आधार पर लोगों को एक दूसरे से पृथक किया गया। इतिहासकारों का मानना है कि उस समय लोकतांत्रिक व्यवस्था विद्यमान थी अतः किसी भी कार्य को करने के लिए लोग स्वतंत्र थे। इसप्रकार एक सामाजिक व्यवस्था ने जन्म ले लिया होगा। यहाँ यह प्रश्न दिमाक में आता है कि क्या कोई मनुष्य स्वेछा से किसी काम को करने लिए स्वयं राजी हो गया होगा या फिर उसे मजबूर किया गया ? यदि मनुष्य ...

करणी सेना और सांप्रदायिक आतंकवाद

कहने के लिए तो देश में लोकतंत्र और संविधान के निर्देशानुसार शासन व्यवस्था चलाई जा रही है। परंतु समाज में व्याप्त कुछ ऐसे सांप्रदायिक तत्व अपना मुंह ऊपर उठाए खड़े रहते है...