कहने के लिए तो देश में लोकतंत्र और संविधान के निर्देशानुसार शासन व्यवस्था चलाई जा रही है। परंतु समाज में व्याप्त कुछ ऐसे सांप्रदायिक तत्व अपना मुंह ऊपर उठाए खड़े रहते हैं जो संविधान की मान मर्यादा को अपने घुटनों के बल टिका देते हैं और यह पोलियो से ग्रसित हो जाता है। इन सांप्रदायिक तत्वों का भरण-पोषण छोटे-छोटे स्वयं संघ समूह से लेकर देश के बड़े-बड़े स्वयं संघ समूह द्वारा किया जाता है। देश में जो 90 के दशक में सांप्रदायिक बयार चली वह अब धीरे-धीरे तूफान का रूप लेती जा रही है। इसी का एक उदाहरण देखने को मिला जब एक व्यक्ति को राजस्थान में जिंदा जलाया गया और उसका वीडियो बनाकर अपलोड कर दिया गया। हम जैसे देश के लगभग सभी लोगों ने उसको देखा और अपनी-अपनी प्रतिक्रिया देकर रोजमर्रा की जिंदगी में लग गए। जिनके हृदय में अभी थोड़ी दया भावना है,वीडियो देखने पर उनका दिल जरूर पसीजा होगा परंतु अधिकांश लोग उसका वह चित्र एक फिल्म के दृश्य के रूप में देख कर आगे बढ़ गए होंगे। इसमें हद तो तब हो गई जब उस व्यक्ति के लिए देशभर से रुपए का बंदोबस्त किया जाने लगा जिसने यह कारनामा किया था। यह दिखाता कि हमारी सांप्रदायिक भेदभाव रूपी भावना कितनी मजबूती से जड़ जमा रही है। यहां हमारी प्रस्तावना के लोक बंधुत्व रूपी अवधारणा को भी एक गहरा झटका अवश्य ही लगा होगा।
बहरहाल बात करते हैं पद्मावती से बदलकर होने वाली पद्मावत पर। वैसे तो इसका विरोध अंकुरित होने के समय ही हो गया था जब संजय लीला भंसाली को थप्पड़ मारा गया था। उस समय प्रशासन से लेकर राजनेताओं तक सभी चुप रहे निर्देशक साहब को सिवाय राजस्थान छोड़ने के कोई रास्ता दिखाई नहीं दिया और वह छोड़कर चले भी गए। यहां कई सवाल उभरते हैं। जैसे प्रशासन इतना सुस्त क्यों ?क्या राजनीतिक दबाव बड़ा है संविधान से ?क्या करणी सेना तय करेगी कि कैसी फिल्म बनानी है ? क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सही मायने में है? इन सभी सवालों के बीच फिल्म अपने पूर्ण रूप में बनकर तैयार हो गई और इसके साथ ही अनेक विवादों को लेकर फिल्म पर रोक भी लग गई । जो कि दर्शाता है कि कैसे कोई विरोधी गुट आमर्यादित तरीके से संविधान के खिलाफ जाकर सरकार और उसकी व्यवस्था को चूर-चूर कर सकता है । मोदी सरकार का निर्देश सेंसर बोर्ड रूपी तोते को चला गया और नाम पद्मावती से पद्मावत हो गया ।नाम बदलकर हो सकता था कि राजपूती शान को थोड़ा बढ़ाया जा सकता था परंतु ऐसा नहीं हुआ। और राजपूती करणी सेना अपने पुराने ढर्रे पर ही कायम रही। इन बड़ी मुसीबतों के बीच संजय लीला भंसाली को उच्चतम न्यायालय ने थोड़ी राहत दी और फिल्म 25 जनवरी को रिलीज करने का निर्देश दिया ।इस फिल्म ने 2 दिन में 56 करोड़ों रुपए की कमाई भी कर ली परंतु दर्शक शायद ही बेहिचक फिल्म का आनंद ले पाए होंगे क्योंकि थोड़ा बहुत खौफ तो अवश्य ही होगा करणी सेना का जो कि सरकार, संविधान और प्रशासन से भी बड़ी हो गई है।
इन सभी गतिविधियों के बीच करणी सेना ने एक स्कूली बस पर हमला किया जो कि बच्चों से भरी थी । यह तथाकथित आतंक का रूप भयावह भी हो सकता था यदि कुछ घटना हो जाती। ये आतंकी रूप धारण किये हुए खुले तौर पर सड़क से लेकर सिनेमा हॉल तक लोगों पर हमला करते हैं और प्रशासन मूकदर्शक की तरह शांत रहता है। इसके साथ ही सरकार भी इनका हौसला बढ़ाती है फिल्म को प्रतिबंधित करके। राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और हरियाणा की सरकारों ने उच्चतम न्यायालय के निर्देश के खिलाफ जाकर अपने राज्यों में फिल्म को रिलीज न करने का आदेश दिया। इसके लिए पुनः न्यायालय को आगे आना पड़ा और उन को निर्देश दिया गया कि यह राज्य भी फिल्म को दिखाएंगे। यह दिखाता है कि किस प्रकार हमारे देश की एकता को तोड़ा मरोड़ा जा रहा है। इसके साथ ही राज्यों द्वारा फिल्म के रिलीज न करने वाले आदेश से हमारी संघीय प्रणाली को भी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की गई।
यदि बात की जाए हमारे समाज की तो वर्तमान में ऐसे अनेक संगठन उभर कर सामने आ गए हैं जो 1 दिन धर्म के नाम पर, एक दिन जाति के नाम पर देश को खंडित करने की ओर अग्रसर हैं।कुछ दिन पहले राजस्थान की वह घटना कौन भूल सकता है जब न्यायालय के परिसर में लहरा रहे राष्ट्रध्वज को हटाकर उस पर भगवा झंडा लहराया गया। यह दिखाता है कि हमारे समाज में किस तरीके से जहर घोला जा रहा है। यदि समय रहते इस जहर को फैलने से न रोका गया तो वह दिन दूर नहीं जब भारत भी सीरिया, अफगानिस्तान और इराक जैसे देशों की तरह आग में जल रहा होगा। सरकार को ,सामाजिक संगठनों को और राजनीतिक दलों को जातिगत तथा धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठकर एक स्वच्छ समाज के निर्माण में अपने अपने कदम आगे बढ़ाने चाहिए।
सलमान अली
Superb brother
ReplyDeleteThanku Shailabh
ReplyDeleteGood.
ReplyDeletekeep it up..👍
sab sahi hai par ye bhi jhut nahi hai..
ReplyDeletedead bodies ganga varansi