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2G घोटाला औए सीबीआई

समय के साथ परिवर्तन सकारात्मक दिशा में होना अत्यंत महत्वपूर्ण है। 7 साल में हमारे देश के अंदर संचार क्षेत्र में एक क्रांति देखने को मिली हम 2 जी से 4जी चलाकर आनंद लेने लगे परंतु 7 साल में  2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का किसी मंजिल तक ना पहुंच पाना देश की जनता और संस्थानों के लिए  दयनीय है। जिस प्रकार न्यायालय ने 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के सभी आरोपियों को बरी कर दिया है उससे न केवल कैग की रिपोर्ट पर ही संदेह होता है अपितु सीबीआई जैसी उच्च संस्थाएं भी शक के दायरे में आती हैं।
             
           नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक विनोद राय जी ने 2जी स्पेक्ट्रम को लेकर जब चिठ्ठा संसद के सामने रखा तो ना केवल संसद में बल्कि शहर और गांव की गलियों तक भूचाल आ गया । विनोद राय के आकलन के अनुसार 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ, जो ए राजा की नीति पहले आओ पहले पाओ के कारण हुआ। अब जबकि सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है तब अनेक पहलू उभरकर सामने आ रहे हैं । इसमें सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि क्या 2G स्पेक्ट्रम घोटाला हुआ ही नहीं था। जो लोग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि घोटाला हुआ था वह इस पर जोर क्यों नहीं दे रहे हैं कि आरोपी बरी कैसे हो गए। इसमें न्यायालय की भूमिका पर सवाल उठाए जाएं या सीबीआई के जांच तरीकों पर या फिर  महालेखा परीक्षक द्वारा किए गए आकलन पर । विनोद राय से क्या  सीबीआई पुनः पूछताछ करेगी या स्वयं के द्वारा जो आंकड़े दिए गए उनके सहारे आगे कदम बढ़ाएगी यह समय पर छोड़ना उचित होगा।
                       महालेखा परीक्षक ने आकलन के तौर पर लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपए नुकसान होने की बात कही थी परंतु सीबीआई ने अपने द्वारा किए गए जांच के आधार पर लगभग 30 हजार करोड़ रुपए के नुकसान होने की बात कही  , यह रकम भी बहुत बड़ी थी। यहां सीबीआई द्वारा जो आंकड़ा प्रस्तुत किया गया वह किस आधार पर प्रस्तुत किया गया कि आज सीबीआई की विशेष अदालत ने सभी दोषियों को बरी कर दिया। अतः यहाँ सीबीआई के जांच तरीकों पर सवाल उठना वाजिब हो जाता है। सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश द्वार दस्तावेजों पर दिए गए वक्तव्य ने जिसमें उन्होंने कहा कि जो दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं वह समझ से परे हैं इनके आधार पर दोषियों को सजा नहीं दी जा सकती, भी सोचने पर मजबूर करता है। साल 2010 में जब विनोद राय जी ने अपनी रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की उस समय यूपीए की सरकार थी तो क्या यह आवश्यक नहीं कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ न की गई हो? ना केवल 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामला बल्कि अन्य कई मामलों में भी सीबीआई के जांच तरीकों पर प्रश्नचिन्ह लगते रहें हैं जिनमें आरूषि हत्याकांड भी एक महत्वपूर्ण घटना है।
                  2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में मीडिया की भी  अहम भूमिका थी । बिना किसी जांच सबूत के किसी पर आरोप प्रत्यारोप लगाना स्वयं मीडिया की नैतिकता के विरुद्ध था। क्या मीडिया ने कभी नहीं सोचा कि वह अपने स्तर से इन आरोपों की जांच करवाए और अपनी स्वच्छ रिपोर्ट लोगों तक पहुंचाए ? क्या सिर्फ एक पार्टी को सत्ता से बेदखल करने के लिए सभी संस्थानों ने मिलकर एक चक्रव्यूह रचा जिसको यूपीए सरकार तोड़ नहीं पाई यह भी एक पहेली ही है। आज जब न्यायालय ने सभी दोषियों को बरी कर दिया है तो वह अपनी राजनीतिक छवि को पुनः सुधार सकते हैं परंतु मीडिया पर संशय कब तक बरकरार रहेगा यह नहीं कह सकते।
   
             सलमान अली

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