स्वर्ग के नाम से मशहूर कश्मीर वर्तमान में पत्थर फेंकने वाले लोगों से गुलजार नजर आता है। स्वतंत्रता के पश्चात वर्तमान तक कश्मीर में कभी भी स्थाई शांति देखने को नहीं मिली । कुछ समय शान्ति रहने के पश्चात घाटी ओखी चक्रवात की तरह ऊफान मारने लगती है। अलगाववादी पुनः सक्रिय हो जाते हैं तथा नौजवानों , बच्चों से लेकर महिलाएं पत्थरबाजों की टोली में शामिल हो जाती हैं। इन सब घटनाओं के पीछे सभी के अपने-अपने दृष्टिकोण हो सकते हैं परंतु यह सत्य है कि सृष्टि का प्रत्येक मानव अपने जीवन में सुख शांति चाहता है, फिर ये लोग अपनी जान हथेली पर डालकर क्यों पत्थर फेंकते हैं ,सोचने पर मजबूर कर देता है।।
साल 2011 में भारत सरकार ने कश्मीरी युवकों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री विशेष छात्रवृत्ति योजना चालू की थी। इस छात्रवृत्ति योजना में 5000 कश्मीरी युवकों को प्रत्येक वर्ष देश के अन्य हिस्सों में उच्च शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें 250 इंजीनियरिंग के छात्र, 250 मेडिकल और 4500 छात्र अन्य पाठ्यक्रमों के लिए चुने जाने थे परंतु दुर्भाग्यवश यह आंकड़ा कभी भी भारत सरकार नहीं छू पाई। साल 2012 -13 में जहां 3775 साल छात्र इस योजना से लाभांवित हुए थे वहीं साल 2013 -14 में यह आंकड़ा 4885 तक जा पहुंचा परंतु 2014 में मोदी सरकार के आने के पश्चात यह आंकड़ा 1314 पर आ गया और 2015 -16 में मात्र 406 छात्र इस योजना से लाभान्वित हुए। इस योजना के गर्त में जाने के अनेक कारण हो सकते हैं उसमें सरकार की प्रतिबद्धता भी एक कारण हो सकती है।
प्रत्येक सरकार चाहती है कश्मीर में शांति बहाली हो परंतु जमीनी कार्यवाही में वह प्रतिबद्ध नजर नहीं आती। दिनेश्वर शर्मा के नेतृत्व में कश्मीर के लिए विशेष वार्ताकार नियुक्त किया जाना सराहनीय कदम है परंतु सिर्फ वार्ताकार नियुक्त करने से कश्मीरी समस्या को नहीं सुलझाया जा सकता। शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति के लिए अमृत की भूमिका अदा करती है। कश्मीरी समस्या को भी शिक्षा के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है। अतः सरकार को ना केवल वर्तमान योजनाओं को सुचारु रुप से चलाना चाहिए बल्कि शिक्षा से संबंधित अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
प्रत्येक सरकार चाहती है कश्मीर में शांति बहाली हो परंतु जमीनी कार्यवाही में वह प्रतिबद्ध नजर नहीं आती। दिनेश्वर शर्मा के नेतृत्व में कश्मीर के लिए विशेष वार्ताकार नियुक्त किया जाना सराहनीय कदम है परंतु सिर्फ वार्ताकार नियुक्त करने से कश्मीरी समस्या को नहीं सुलझाया जा सकता। शिक्षा किसी भी समाज की प्रगति के लिए अमृत की भूमिका अदा करती है। कश्मीरी समस्या को भी शिक्षा के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है। अतः सरकार को ना केवल वर्तमान योजनाओं को सुचारु रुप से चलाना चाहिए बल्कि शिक्षा से संबंधित अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
.....प्रयोग प्रशासन में? https://salmanksath.blogspot.com/2018/06/blog-post.html
Great thinking
ReplyDeleteधन्यवाद
Delete👏👏👏
ReplyDeleteकश्मीर के जो हालात हैं वो सिर्फ राजनीति की देन हैं
ReplyDeleteहम आपकी बात से बिल्कुल सहमत हैं शकुंतला जी।। और ये हालात भी सिर्फ राजनीतिक पहल के कारण ही सही हो सकते हैं।।
Deleteसही लिखा आपने प्रिय सलमान जी | कश्मीर में केवल शिक्षा ही जागृति का आलोक फैला सकती है | पत्थरबाजी बहुत दुखद है |
ReplyDeleteरेणु जी हम हमेशा से ही अशांति से शांति की ओर बढ़ते आए हैं। और कश्मीर की अशांति भी कभी न कभी समाप्त होगी परंतु यदि हम शैक्षिक परिवर्तन तेजी से लाएं तो बहुत जल्द कश्मीर के हालात सुधर सकते हैं और इसके लिए राजनीतिक लाभ को किनारे रखना पड़ेगा।
Deleteअशांति से शान्ति का मतलब सभ्यता के विकास से है।
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