प्रयोग शब्द अपने आप में बहुत कुछ समेटे हुए है। इसी शब्द के माध्यम से विश्व को अनेक नए आयाम देखने को मिले। वह प्रयोग ही था जब हमने पोखरण फतह किया, वह प्रयोग ही था जब मनुष्य चांद पर गया, वह प्रयोग ही था जब एडिशन नौकरानी को कीड़ों का बना आमलेट खिला रहा था। इन सभी प्रयोगों को यदि ध्यान में रखकर किसी से पूछा जाए तो वह सफल ही कहेगा, भले ही पोखरण जैसे प्रयोगों से कितने ही इंसानों का जीवन खतरे में पड़ गया हो,भले ही एडिशन की नौकरानी बीमार पड़ गई हो। आज जब भारतीय प्रशासन में नए प्रयोग की बात कही जा रही है तो कई विद्वान इसको भी भारत के लिए सही कदम बता रहे हैं परंतु क्या वास्तव में यह प्रयोग भी पोखरण के प्रयोग की तरह अपनी कमियों को छुपा पाएगा ? यह भी एक पहेली है।
दरसल केंद्र सरकार नौकरशाही को लेकर एक अहम प्रयोग करने जा रही है। इस प्रयोग के जरिए लैटेरल एंट्री के माध्यम से भी लोग उच्च प्रशासनिक सेवा में जा सकेंगे। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने इस आशय की औपचारिक अधिसूचना जारी करते हुए संयुक्त सचिव के 10 पदों के लिए आवेदन मांगे हैं। 40 साल का कोई भी ग्रेजुएट जिसके पास सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में काम करने का कम से कम 15 साल का अनुभव हो इसके लिए आवेदन कर सकता है। ये नियुक्तियां फिलहाल राजस्व, वित्तीय सेवा, आर्थिक मामले, किसान कल्याण, सड़क परिवहन और हाईवे शिपिंग व पर्यावरण विभाग में होंगी।
भारतीय प्रशासन में इस प्रकार के प्रयोग की बात करना कोई नई बात नहीं है। एक लंबे अरसे से अनेक विशेषज्ञ इसमें परिवर्तन के अलग-अलग रास्ते सुझाते आए हैं। नोकरशाही में लैटेरल एंट्री का प्रस्ताव पहली बार 2005 में बने प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में आया था। 2005 से लेकर वर्तमान तक किसी सरकार ने इस प्रस्ताव से संबंधित एक्शन नहीं लिया। क्यों नहीं लिया यह भी अपने आप में एक प्रश्न है। कारण तो कई रहे होंगे वरना 13 साल कोई कम समय तो होता नहीं। इन कारणों में क्या राजनीतिक कारण हो सकता है? यदि ऐसा है तो मोदी सरकार क्यों इस प्रस्ताव पर अमल करती नजर आ रही है? जबकि देश में कहीं ना कहीं राजनीतिक आस्थिरता दिख रही है। तो फिर क्या मोदी सरकार पर कोई अन्य दबाव काम कर रहा है जो राजनीति दबाव से अधिक है? क्या वह कार्पोरेट का दबाव हो सकता है? यदि कॉर्पोरेट का दबाव है तो मोदी सरकार क्यों दबाव में आई ? यह भी एक बड़ा प्रश्न है। मैं समझ सकता हूं कि इन प्रश्नों से आपका मस्तिष्क भी पूरी तरह घूम रहा होगा जैसे कि मेरा । मगर किया भी क्या जा सकता है, सरकार कुछ इस प्रकार से घुमा ही रही है।
प्रश्न तो कई हैं और इन्हीं प्रश्नों के साथ कुछ विशेषज्ञ सरकार के साथ खड़े भी नजर आते हैं। उनका मानना है की सरकार लैटेरल एंट्री के माध्यम से होनहार लोगों को मौका दे रही है और इससे प्रशासन को एक मजबूती प्रदान की जा सकती है। इसमें कुछ विशेषज्ञ एक नई भारतीय प्रबंधन सेवा के पक्ष में भी नजर आते हैं। लेकिन क्या प्रशासन का एकमात्र उद्देश्य प्रबंधन करना है, यदि ऐसा है तो फिर नीतिशास्त्र जैसे विषय को मुख्य परीक्षा में क्यों रखा गया ? इसके साथ ही कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि परीक्षा का पैटर्न ऐसा है कि सिविल सेवक एक किताब तक सीमित हो जाते हैं। एक मायने में वह सही भी हो सकते हैं परंतु प्रश्न तो फिर खड़ा होता है। पहला तो यही कि यदि विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं तो परीक्षा का पैटर्न ही क्यों नहीं व्यवहारिक करते ? दूसरा यह कि सिविल सेवा में चयनित अभ्यर्थियों की ट्रेनिंग पर फिर इतना पैसा क्यों खर्चा करते हैं ,जब वह किताब तक ही सीमित हैं। जाहिर है कि विशेषज्ञ अपने आप में तो सही हो सकते हैं परंतु एक व्यवहारिक अर्थ में तो उनके भी विचार कुछ सही सामंजस्य स्थापित करने में विफल ही प्रतीत हो रहे हैं।
अब यदि हम सरकार के लैटेरल एंट्री संबंधी फैसले के कुछ सकारात्मक पहलू पर नजर दौड़ाएं तो इसमें अनेक परतें दिखती प्रतीत होती हैं। सरकार के इस कदम को अच्छा भी कहा जा सकता है क्योंकि इससे सरकारी दायरे के बाहर मौजूद प्रतिभा को सरकार के काम करने के तौर तरीकों को समझने का मौका मिलेगा। इसके साथ-ही-साथ वह बंद माहौल भी दूर हो सकता है जहां अभी तक केवल आईएएसई पहुंच पाते थे। इस कदम का एक और प्रभाव यह भी होगा कि जब दूसरे लोग बाहर से आएंगे तो एक प्रतिस्पर्धा भी पैदा होगी। ऐसे में हमारे लोकसेवक जो सयुंक्त सचिव के रूप में काम कर रहे हैं वह भी कहीं ना कहीं विशेषज्ञता हासिल करने की ओर झुकेंगे। इससे भारतीय प्रशासन में एक नया आयाम स्थापित हो सकता है। पहलू तो कई दिख रहे हैं परंतु पुनः कई प्रश्न भी उभर जाते हैं। जैसे क्या प्रतिस्पर्धा से लोक सेवकों के बीच खींचतान का माहौल नहीं उभरेगा? यदि यह खींचतान का माहौल उभरा तो फिर आप समझ ही सकते हैं कि प्रशासन किस रुप में हमारे सामने आएगा। इसके अलावा यह भी शंका बार-बार उभर रही है कि सरकार ने जो 10 संयुक्त सचिव के पदों पर आवेदन मांगा है वह सीधे साक्षात्कार के माध्यम से ही क्यों भरे जा रहे हैं, जबकि सरकार ग्रुप सी व ग्रुप डी के साक्षात्कार को धांधली के कारण समाप्त कर चुकी है। तो फिर क्या सरकार व्यापारिक घरानों को मौका देना चाहती है? कुछ लोगों के विचार इससे भिन्न हो सकते हैं। विचार भिन्न होते हुए उनको यह सोचने की जरूरत कि सरकार इन पदों को संघ लोक सेवा आयोग से क्यों नहीं भर रही है? यदि सरकार जिम्मेदारी सौंपती तो जनता का विश्वास भी बना रहता और एक बेहतर प्रतिभा को मौका भी मिलता। बहरहाल प्रश्न तो कई हैं और शंकाएं उससे भी ज्यादा। लेकिन इतना जरूर है कि जिसने आईएएस बनने का सपना देखा था और नहीं बन पाया उसको पीछे के दरवाजे से एक मौका तो दे ही दिया है मोदी सरकार ने। अब वह मंत्री से जुगाड़ कर के अंदर आएं या अपनी प्रतिभा की बदौलत यह उनकी परेशानी।
दरसल केंद्र सरकार नौकरशाही को लेकर एक अहम प्रयोग करने जा रही है। इस प्रयोग के जरिए लैटेरल एंट्री के माध्यम से भी लोग उच्च प्रशासनिक सेवा में जा सकेंगे। डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल एंड ट्रेनिंग ने इस आशय की औपचारिक अधिसूचना जारी करते हुए संयुक्त सचिव के 10 पदों के लिए आवेदन मांगे हैं। 40 साल का कोई भी ग्रेजुएट जिसके पास सार्वजनिक या निजी क्षेत्र में काम करने का कम से कम 15 साल का अनुभव हो इसके लिए आवेदन कर सकता है। ये नियुक्तियां फिलहाल राजस्व, वित्तीय सेवा, आर्थिक मामले, किसान कल्याण, सड़क परिवहन और हाईवे शिपिंग व पर्यावरण विभाग में होंगी।
भारतीय प्रशासन में इस प्रकार के प्रयोग की बात करना कोई नई बात नहीं है। एक लंबे अरसे से अनेक विशेषज्ञ इसमें परिवर्तन के अलग-अलग रास्ते सुझाते आए हैं। नोकरशाही में लैटेरल एंट्री का प्रस्ताव पहली बार 2005 में बने प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट में आया था। 2005 से लेकर वर्तमान तक किसी सरकार ने इस प्रस्ताव से संबंधित एक्शन नहीं लिया। क्यों नहीं लिया यह भी अपने आप में एक प्रश्न है। कारण तो कई रहे होंगे वरना 13 साल कोई कम समय तो होता नहीं। इन कारणों में क्या राजनीतिक कारण हो सकता है? यदि ऐसा है तो मोदी सरकार क्यों इस प्रस्ताव पर अमल करती नजर आ रही है? जबकि देश में कहीं ना कहीं राजनीतिक आस्थिरता दिख रही है। तो फिर क्या मोदी सरकार पर कोई अन्य दबाव काम कर रहा है जो राजनीति दबाव से अधिक है? क्या वह कार्पोरेट का दबाव हो सकता है? यदि कॉर्पोरेट का दबाव है तो मोदी सरकार क्यों दबाव में आई ? यह भी एक बड़ा प्रश्न है। मैं समझ सकता हूं कि इन प्रश्नों से आपका मस्तिष्क भी पूरी तरह घूम रहा होगा जैसे कि मेरा । मगर किया भी क्या जा सकता है, सरकार कुछ इस प्रकार से घुमा ही रही है।
प्रश्न तो कई हैं और इन्हीं प्रश्नों के साथ कुछ विशेषज्ञ सरकार के साथ खड़े भी नजर आते हैं। उनका मानना है की सरकार लैटेरल एंट्री के माध्यम से होनहार लोगों को मौका दे रही है और इससे प्रशासन को एक मजबूती प्रदान की जा सकती है। इसमें कुछ विशेषज्ञ एक नई भारतीय प्रबंधन सेवा के पक्ष में भी नजर आते हैं। लेकिन क्या प्रशासन का एकमात्र उद्देश्य प्रबंधन करना है, यदि ऐसा है तो फिर नीतिशास्त्र जैसे विषय को मुख्य परीक्षा में क्यों रखा गया ? इसके साथ ही कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि परीक्षा का पैटर्न ऐसा है कि सिविल सेवक एक किताब तक सीमित हो जाते हैं। एक मायने में वह सही भी हो सकते हैं परंतु प्रश्न तो फिर खड़ा होता है। पहला तो यही कि यदि विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं तो परीक्षा का पैटर्न ही क्यों नहीं व्यवहारिक करते ? दूसरा यह कि सिविल सेवा में चयनित अभ्यर्थियों की ट्रेनिंग पर फिर इतना पैसा क्यों खर्चा करते हैं ,जब वह किताब तक ही सीमित हैं। जाहिर है कि विशेषज्ञ अपने आप में तो सही हो सकते हैं परंतु एक व्यवहारिक अर्थ में तो उनके भी विचार कुछ सही सामंजस्य स्थापित करने में विफल ही प्रतीत हो रहे हैं।
अब यदि हम सरकार के लैटेरल एंट्री संबंधी फैसले के कुछ सकारात्मक पहलू पर नजर दौड़ाएं तो इसमें अनेक परतें दिखती प्रतीत होती हैं। सरकार के इस कदम को अच्छा भी कहा जा सकता है क्योंकि इससे सरकारी दायरे के बाहर मौजूद प्रतिभा को सरकार के काम करने के तौर तरीकों को समझने का मौका मिलेगा। इसके साथ-ही-साथ वह बंद माहौल भी दूर हो सकता है जहां अभी तक केवल आईएएसई पहुंच पाते थे। इस कदम का एक और प्रभाव यह भी होगा कि जब दूसरे लोग बाहर से आएंगे तो एक प्रतिस्पर्धा भी पैदा होगी। ऐसे में हमारे लोकसेवक जो सयुंक्त सचिव के रूप में काम कर रहे हैं वह भी कहीं ना कहीं विशेषज्ञता हासिल करने की ओर झुकेंगे। इससे भारतीय प्रशासन में एक नया आयाम स्थापित हो सकता है। पहलू तो कई दिख रहे हैं परंतु पुनः कई प्रश्न भी उभर जाते हैं। जैसे क्या प्रतिस्पर्धा से लोक सेवकों के बीच खींचतान का माहौल नहीं उभरेगा? यदि यह खींचतान का माहौल उभरा तो फिर आप समझ ही सकते हैं कि प्रशासन किस रुप में हमारे सामने आएगा। इसके अलावा यह भी शंका बार-बार उभर रही है कि सरकार ने जो 10 संयुक्त सचिव के पदों पर आवेदन मांगा है वह सीधे साक्षात्कार के माध्यम से ही क्यों भरे जा रहे हैं, जबकि सरकार ग्रुप सी व ग्रुप डी के साक्षात्कार को धांधली के कारण समाप्त कर चुकी है। तो फिर क्या सरकार व्यापारिक घरानों को मौका देना चाहती है? कुछ लोगों के विचार इससे भिन्न हो सकते हैं। विचार भिन्न होते हुए उनको यह सोचने की जरूरत कि सरकार इन पदों को संघ लोक सेवा आयोग से क्यों नहीं भर रही है? यदि सरकार जिम्मेदारी सौंपती तो जनता का विश्वास भी बना रहता और एक बेहतर प्रतिभा को मौका भी मिलता। बहरहाल प्रश्न तो कई हैं और शंकाएं उससे भी ज्यादा। लेकिन इतना जरूर है कि जिसने आईएएस बनने का सपना देखा था और नहीं बन पाया उसको पीछे के दरवाजे से एक मौका तो दे ही दिया है मोदी सरकार ने। अब वह मंत्री से जुगाड़ कर के अंदर आएं या अपनी प्रतिभा की बदौलत यह उनकी परेशानी।
कॉर्पोरेट जगत के अलावा उन संबंधियों या संघ के चहितों को भी प्रशासन में आने का मौका तो मिलेगा ही। राजनीति का बढ़ता ऐसा हस्तछेप खास कर उच्य पद के चयन में वो भी जब एक निरपेक्ष और अभी तक बिना दाग लगी संस्था संघ लोक सेवा आयोग अपना कार्य कर रही है,जो अभी तक किसी भ्रस्टाचार्य मे लिप्त न रही हो।अत्यंत दुखद निर्णय है।
ReplyDeleteकॉर्पोरेट जगत के अलावा उन संबंधियों या संघ के चहितों को भी प्रशासन में आने का मौका तो मिलेगा ही। राजनीति का बढ़ता ऐसा हस्तछेप खास कर उच्य पद के चयन में वो भी जब एक निरपेक्ष और अभी तक बिना दाग लगी संस्था संघ लोक सेवा आयोग अपना कार्य कर रही है,जो अभी तक किसी भ्रस्टाचार्य मे लिप्त न रही हो।अत्यंत दुखद निर्णय है।
ReplyDeleteप्रिय सलमान लेख से पहले आपको पवित्र रमजान महीने और मुबारक ईद की ढेरों शुभकामनायें | ईद आपके और आपके परिवार के जीवन में सुख -समृद्धि और शुभ स्वास्थ्य का उपहार लेकर आये | ये ईद आप सबके बल्कि हम सब और देश, समाज के लिए सुख , शांति और आपसी भाईचारे का पैगाम लेकर आये | पुनः ईद मुबारक |
ReplyDeleteRenu जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया।
Deleteइसके साथ ही ईद की आपको भी बहुत बहुत मुबारकबाद।
प्रिय सलमान -- सरकार के नौकरशाही को लेकर नए प्रयोग पर लिका गया लेख बहुत ही सारगर्भित है | सबसे बड़ी बात कि आपने इसे बड़ी ही सादगी से लिखा है | सच में अगर कोई आलोचक या समीक्षक ना हो तो सरकार के अच्छे बुरे कार्यों का सही मूल्याङ्कन कौन करेगा ?आपने बड़ी ही सुघड़ता से समीक्षा लेख लिखा है | सरकार के नित नए प्रयोग कैसे रहेंगे ये तो भविष्य ही बताएगा पर उनका लोक हित में होना बहुत जरूरी है | भारतीय प्रशासनिक सेवा बहुत ही प्रतिष्ठित सेवा है इसे सचमुच सरकारी दबाव से दूर रहने का अधिकार रहना चाहिए | सरकार को इन नीतियों पर पारदर्शिता से काम करना चाहिए |लेख लिए आपको हार्दिक बधाई | सस्नेह -----
ReplyDeleteRenu जी अपने अपना कीमती समय निकाल कर लेख पर अपनी प्रतिक्रिया दी इसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ।
Deleteआपका ऐसे ही हौसला बढ़ाना हम जैसे लेखकों को लिखने के लिए प्रेरित करता है।
जिस प्रकार से आपने लेख को विस्तार देते हुए प्रतिक्रिया, उसके लिए आपका आभारी हूँ।
आपका पुनः आभार।।
जी प्रथम भाई यह एक खेल है जो शायद हम समझ पाएं।
Deleteलेख पर प्रतिक्रिया देने के लिए आपका आभार।।
सारगर्भित एवं विचारणीय लेख।
ReplyDeleteRavindra ji आपका बहुत बहुत आभार।
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