अक्सर लोगों द्वार यह सुनने को मिलता है कि अमेरिका का लोकतंत्र सबसे पुराना तो है लेकिन भारत का लोकतंत्रीय स्वरूप नया होते हुए भी दुनिया को एक मिसाल पेश कर रहा है। यहां इतनी विविधता के होते हुए भी लोग लोकतंत्र को और अधिक मजबूत बनाते जा रहे हैं। आपस में कदम से कदम मिलाकर यहां के लोग भारत को ना केवल जमीन पर बल्कि अंतरिक्ष तक विश्व के सामने एक बेहतरी के साथ खड़ा कर रहे हैं । परंतु कुछ उपद्रवी लोगों द्वारा समाज में एक दूसरे के प्रति नफरत पैदा कर देश को पीछे धकेलने का काम किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश राज्य के कासगंज में भी कुछ उपद्रवियों द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर माहौल को खराब करने की कोशिश की गई और वह थोड़े बहुत कामयाब भी हुए। ये उपद्रवी केवल एक धर्म या जाति में नहीं हैं बल्कि प्रत्येक जगह कुछ मात्रा में मिल जाते हैं जो कि पूरे समाज को नकारात्मक दिशा की ओर मोड़ देते हैं।
गणतंत्र दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश के कासगंज में कुछ ऐसा ही देखने को मिला जहां तिरंगे की यात्रा को लेकर दो समुदायों में भिड़ंत हो गई। और इस भिड़ंत ने काफी उग्र रूप ले लिया इसमें चंदन गुप्ता नाम के युवक की गोली लगने से मौत भी हो गई। इस कासगंज की घटना ने देश को पुनः एक नई बहस में झोंक दिया। एक न्यूज चैनल अपनी टीआरपी के चक्कर में लोगों को यह बता रहा है कि क्या देश में तिरंगे को फहराने पर गोली मारी जाएगी? परंतु क्या यह सच है आपने जानने की कोशिश की? वहीं दूसरा न्यूज़ चैनल वीडियो के साथ यह दिखा रहा था कि तिरंगे के साथ भगवा झंडा क्यों? इस पर कुछ लोगों की प्रतिक्रिया भी आई कि क्या भगवा झंडा नहीं लहरा सकते? यह सोचने वाली बात है कि जब तिरंगे झंडे की रैली निकल रही है तो फिर भगवा झंडा क्यों? या फिर भगवा झंडा लहराना ही है तो अलग से बाकायदा केवल भगवा रैली क्यों नहीं निकालते?या फिर भगवा और तिरंगे को बराबर का दर्जा क्यों नहीं दे देते ? बहरहाल सवाल तो कई हैं पर समाज कैसे बदल रहा है यह अत्यंत सोचनीय विषय है। हम आज दुनिया की सबसे ज्यादा युवा आबादी के साथ ऊर्जा से भरपूर हैं परंतु ऊर्जा कासगंज जैसे दंगों में जाएगी तो विश्व में अपना कीर्तिमान कभी नहीं बना पाएंगे। शिक्षित होना अत्यंत जरूरी है परंतु यदि यह शिक्षा हमको एक बेहतर इंसान नहीं बना सकती तो किस काम की। कासगंज में एक समुदाय द्वारा झंडारोहण किया जा रहा था तो क्या आवश्यकता थी उसी गली से गुजरने की। शायद यहां से हो हल्ला द्वारा कुछ लोग आनंद उठाना चाह रहे होंगे परंतु घटना घट गई माहौल खराब हो गया, आपस में तनाव उत्पन्न हो गया। यदि यही नौजवान प्रेम सहयोग के साथ आगे बढ़ते तो कासगंज की बयार कुछ और होती। कासगंज के साथ-साथ देश में घटी कुछ अन्य घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ अराजक तत्व जानबूझकर ऐसा माहौल उत्पन्न कर रहे हैं जिससे देश का माहौल खराब हो तथा दंगे फसाद हों। यदि ऐसा है तो जाहिर है इससे किसी ना किसी को तो फ़ायदा हो ही रहा होगा, अन्यथा ऐसी घटनाएं देखने को नहीं मिलतीं। यदि देखा जाए तो इससे कुछ पार्टियों को तो फायदा हो ही रहा है तथा कुछ नेता भी अपनी राजनीतिक गतिविधियों को तेजी प्रदान करने के लिए ऐसी घटनाएं कराते रहते हैं।।
गणतंत्र दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश के कासगंज में कुछ ऐसा ही देखने को मिला जहां तिरंगे की यात्रा को लेकर दो समुदायों में भिड़ंत हो गई। और इस भिड़ंत ने काफी उग्र रूप ले लिया इसमें चंदन गुप्ता नाम के युवक की गोली लगने से मौत भी हो गई। इस कासगंज की घटना ने देश को पुनः एक नई बहस में झोंक दिया। एक न्यूज चैनल अपनी टीआरपी के चक्कर में लोगों को यह बता रहा है कि क्या देश में तिरंगे को फहराने पर गोली मारी जाएगी? परंतु क्या यह सच है आपने जानने की कोशिश की? वहीं दूसरा न्यूज़ चैनल वीडियो के साथ यह दिखा रहा था कि तिरंगे के साथ भगवा झंडा क्यों? इस पर कुछ लोगों की प्रतिक्रिया भी आई कि क्या भगवा झंडा नहीं लहरा सकते? यह सोचने वाली बात है कि जब तिरंगे झंडे की रैली निकल रही है तो फिर भगवा झंडा क्यों? या फिर भगवा झंडा लहराना ही है तो अलग से बाकायदा केवल भगवा रैली क्यों नहीं निकालते?या फिर भगवा और तिरंगे को बराबर का दर्जा क्यों नहीं दे देते ? बहरहाल सवाल तो कई हैं पर समाज कैसे बदल रहा है यह अत्यंत सोचनीय विषय है। हम आज दुनिया की सबसे ज्यादा युवा आबादी के साथ ऊर्जा से भरपूर हैं परंतु ऊर्जा कासगंज जैसे दंगों में जाएगी तो विश्व में अपना कीर्तिमान कभी नहीं बना पाएंगे। शिक्षित होना अत्यंत जरूरी है परंतु यदि यह शिक्षा हमको एक बेहतर इंसान नहीं बना सकती तो किस काम की। कासगंज में एक समुदाय द्वारा झंडारोहण किया जा रहा था तो क्या आवश्यकता थी उसी गली से गुजरने की। शायद यहां से हो हल्ला द्वारा कुछ लोग आनंद उठाना चाह रहे होंगे परंतु घटना घट गई माहौल खराब हो गया, आपस में तनाव उत्पन्न हो गया। यदि यही नौजवान प्रेम सहयोग के साथ आगे बढ़ते तो कासगंज की बयार कुछ और होती। कासगंज के साथ-साथ देश में घटी कुछ अन्य घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ अराजक तत्व जानबूझकर ऐसा माहौल उत्पन्न कर रहे हैं जिससे देश का माहौल खराब हो तथा दंगे फसाद हों। यदि ऐसा है तो जाहिर है इससे किसी ना किसी को तो फ़ायदा हो ही रहा होगा, अन्यथा ऐसी घटनाएं देखने को नहीं मिलतीं। यदि देखा जाए तो इससे कुछ पार्टियों को तो फायदा हो ही रहा है तथा कुछ नेता भी अपनी राजनीतिक गतिविधियों को तेजी प्रदान करने के लिए ऐसी घटनाएं कराते रहते हैं।।
यदि बात की जाए ऐसे माहौल को रोकने की तो शायद प्रेम के अलावा और कोई भी रास्ता नजर आएगा। महात्मा गांधी के दिखाए हुए रास्ते को हम अपना कर ही इस दंगे-फसाद को रोक सकते हैं। शायद इसीलिए महात्मा गांधी आज इस तनावपूर्ण माहौल में और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं। यदि बात की जाय महात्मा गांधी द्वारा किए गए कार्यों की तो जब कभी भी देश का माहौल खराब होता था गांधी जी गांव- गांव जाकर लोगों से मिलकर आपसी मनमुटाव को दूर करके एक सकारात्मक माहौल बनाते थे। इसके लिए कोलकाता में हुए 1946 के दंगे को याद कर सकते हैं जिसको रोकने के लिए महात्मा गांधी ने आमरण अनशन किया था। क्या कोई नेता आज ऐसा करेगा? शायद जवाब न में ही मिलेगा।
सलमान अली
सलमान अली
मौत तिरंगे की थी ही नही ।।।।अभी और सोचो मेरे दोस्त।।।कच्चे हो थोड़ा
ReplyDeleteमौत तिरंगे की थी ही नही ।।।।अभी और सोचो मेरे दोस्त।।।कच्चे हो थोड़ा
ReplyDeleteप्रथम निगम आपके सुझाव का मुझे इंतजार रहेगा।
ReplyDeleteऐतिहासिक पहलुओं पर जोर देना था । और रही बात लोकतंत्र की तो अभी भी संविधान को कुछ तबके मानने को तैयार नहीं हैं तो इससे सिद्ध होता है कि संवैधानिक मुल्य सिर्फ संविधान के पन्नो तक ही सीमित है ।
ReplyDeleteआपकी बात से हम सहमत हैं अनुराग भाई। जब तक हम अपनी भावनाओं से ऊपर नहीं उठेंगे तब तक सविंधान का पालन नहीं कर सकते। कुछ लोग सविंधान को ताक पर रख कर अपनी ही बात को सही ठहराने लगते हैं।
ReplyDeletekafi accha prayas dost
ReplyDeleteआपका आभार
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