जब हम एक लोकतंत्र की बात करते हैं तब इस व्यवस्था में निर्णय, कार्य, समझोते एक सहयोगात्मक भावना से होने चाहिये ना कि एक व्यक्ति विशेष के तानाशाही निर्णय से। शायद यही कारण है कि लोकतंत्र में गठबंधन की सरकार कई मायने में बहुमत की सरकार से बेहतर है।जिस प्रकार से वर्तमान और भूतकाल में घटनाएं घटीं जिसमें एक सम्पूर्ण पार्टी या फिर हम कह सकते हैं कि सरकार एक राजनेता की बन कर रह गई है उसने लोकतंत्र की बुनियाद को ही हिला दिया है। जब हम मंत्रिमंडल की बात करते हैं तब उसमें एक संपूर्णता दिखाई पड़ती है। मंत्रिमंडल का निर्माण भी इसी लिए किया जाता है कि सरकार के काम काज में सहयोग के साथ साथ लोकतंत्र की मजबूती को बनाये रखे।आज जब नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया तब शायद ऐसा ही लगा कि हम अभी भी एक राजनेता के इर्द गिर्द चलने का प्रयास कर रहे हैं।
जब हम लोकसभा या फिर विधानसभा के लिए मतदान करते हैं तब शायद कुछ लोगों के मस्तिष्क में यह बात अवश्य रहती होगी कि जिसको हम चुन रहे हैं वह हमारा प्रतिनिधित्व करेगा । नीतीश कुमार के इस्तीफे ने उन लोगों पर अवश्य आघात किया होगा।जिस प्रकार से नीतीश पर यह आरोप लगे हैं कि उनके अध्यक्ष बनने के पश्चात पार्टी में केवल उनकी ही चलती है वह आम आदमी को सोचने पर मजबूर कर देती है। क्या किसी एक नेता के फैसले से सम्पूर्ण व्यवस्था तय हो जानी चाहिये? क्या नीतीश के फैसले में पार्टी के विधायक निःसंकोच निर्णय ले पाए होंगे।? यदि ऐसा नही हुआ होगा और शायद न भी हुआ हो तब लोकतंत्र के कोई मायने नही बचते।कोंग्रेस पर हमेशा से यही आरोप लगते आ रहे हैं कि वह एक परिवार विशेष की पार्टी बनकर रह गई है परन्तु परिवार न सही अन्य पार्टियां बीजेपी ,सपा , बसपा एक नेता विशेष पार्टियां तो हैं ही।
जिस प्रकार से बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी पर भ्रस्टाचार के आरोप लगे हैं उसको देखते हुए उनको अपना इस्तीफा दे देना चाहिए था।यदि उन्होंने ऐसा उचित नहीं समझा तब शायद यह जिम्मेदारी मुख्यमंत्री की थी कि पद से हटाते परन्तु ऐसा नीतीश कुमार जी ने उचित नही समझा। यहाँ यह एक नेता के अनुचित फैसले को उजागर करता है। जिस प्रकार से नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे कर देश की जनता को एक ईमानदार नेता की झलक दिखानी चाही उसी फैसले ने नीतीश बाबू को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अभी हाल ही में खबर आयी कि छत्तीसगढ़ के एक मंत्री की पत्नी ने सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया है तब शायद इस बार भी सभी नेता ईमानदारी का परिचय देंगे। कितने ऐसे राज्य हैं जहाँ मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक पर अपराधों का एक जाल बिछा है परंतु वोटबैंक के मसले पर किसी नेता की ईमानदारी नजर नही आती।
सलमान अली
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