यदि आप एक किसान की बात करेंगे तो उसके लिए जितनी आवश्यकता खाद्य पदार्थों ,बीजों की है उतनी ही आवश्यकता पानी की भी है। वर्तमान में जब तकनीकी इतनी आगे बढ़ गई है तब भी बिना अच्छे मानसून के ना केवल खेती-बाड़ी में बल्कि देश की जीडीपी में भी सकारात्मक प्रभाव देखनो को नहीं मिल सकता। देश की भौगोलिक स्थिति के अनुसार अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग मानसून की आवश्यकता होती है ।किसी भी देश की भौगोलिक स्थिति ही वहाँ की सामाजिक ,आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक व्यवस्था की स्थिति तय करती है। वर्तमान में जब मानसून में परिवर्तन देखने को मिल रहा है तो जाहिर है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक ,राजनीतिक परिवर्तन भी देखने को मिलेंगे।
आई आई टी बॉम्बे की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि 1917 से 2013 के बीच जहाँ वर्षा की मात्रा में राजस्थान में 9:00 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है वहीं गुजरात में इसमें 26.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस रिपोर्ट के पश्चात एक अमेरिकी शोध संस्थान ने इस विषय पर अपनी एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसमें उसने पाया कि उत्तर भारत के काफी ज्यादा क्षेत्रों में वर्षा के पैटर्न में काफी बदलाव देखने को मिला है। इस रिपोर्ट के पश्चात हम कह सकते हैं कि आने वाले समय में उत्तर पूर्वी क्षेत्र सूखे की लपेट में आ जाएंगे और पश्चिम क्षेत्र दलदली भूमि का निर्माण कर रहे होंगे। तब शायद राजस्थान से ऊँटो को भी विस्थापित करना पड़े। पुष्कर मेला जो राजस्थान में ऊँटो की खरीद फरोख्त के लिया दुनिया में मशहूर है उसको भी हटना पड़े।
बारिश के पैटर्न के बदलने के पीछे कई वैज्ञानिक अपने-अपने तर्क देते हैं।कोई पेड़ों की कटाई को मानता है तो कोई ग्लोबल वार्मिंग को दोषी ठहराता है। जहाँ तक पेड़ों की कटाई का सवाल है तो उसने बारिश को अवश्य प्रभावित किया है परंतु कुछ साल की रिपोर्ट के अनुसार जंगलों की प्रतिशतता के आधार पर बढ़ोतरी हुई है।अब सवाल उठत है कि जब पेड़ों की संख्या बढ़ रही है तब वह कैसे बारिश के पैटर्न को बदल रहे हैं?इसके पीछे जहाँ तक हम सोच पाए शायद विकास ही जिम्मेदार है। केवल पेड़ों की संख्या में इजाफा होना मात्र समस्या का समाधान नहीं अपितु यह भी देखना पड़ेगा कि जहाँ से पेड़ काटे गए क्या उसी आस पास के क्षेत्र में पेड़ों को लगाया गया है। बारिश के पैटर्न बदलने का सबसे बड़ा कारण भी शायद यही है।यदि हम एक क्षेत्र से पेडों को काट कर किसी अन्य क्षेत्र में पेड़ लगाकर उसकी भरपाई करना चाहेंगे तो वह उस क्षेत्र विशेष की पारिस्थितिकी तंत्र की बरपाई नहीं कर सकती।विकास भी जरूरी है परन्तु किसी क्षेत्र की मूल संरचना को बदल कर नहीं। सरकार और समाज दोनों को इस विषय पर अवश्य सोचना चाहिए।
सलमान अली
बारिश के पैटर्न के बदलने के पीछे कई वैज्ञानिक अपने-अपने तर्क देते हैं।कोई पेड़ों की कटाई को मानता है तो कोई ग्लोबल वार्मिंग को दोषी ठहराता है। जहाँ तक पेड़ों की कटाई का सवाल है तो उसने बारिश को अवश्य प्रभावित किया है परंतु कुछ साल की रिपोर्ट के अनुसार जंगलों की प्रतिशतता के आधार पर बढ़ोतरी हुई है।अब सवाल उठत है कि जब पेड़ों की संख्या बढ़ रही है तब वह कैसे बारिश के पैटर्न को बदल रहे हैं?इसके पीछे जहाँ तक हम सोच पाए शायद विकास ही जिम्मेदार है। केवल पेड़ों की संख्या में इजाफा होना मात्र समस्या का समाधान नहीं अपितु यह भी देखना पड़ेगा कि जहाँ से पेड़ काटे गए क्या उसी आस पास के क्षेत्र में पेड़ों को लगाया गया है। बारिश के पैटर्न बदलने का सबसे बड़ा कारण भी शायद यही है।यदि हम एक क्षेत्र से पेडों को काट कर किसी अन्य क्षेत्र में पेड़ लगाकर उसकी भरपाई करना चाहेंगे तो वह उस क्षेत्र विशेष की पारिस्थितिकी तंत्र की बरपाई नहीं कर सकती।विकास भी जरूरी है परन्तु किसी क्षेत्र की मूल संरचना को बदल कर नहीं। सरकार और समाज दोनों को इस विषय पर अवश्य सोचना चाहिए।
सलमान अली
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