2009 के लोकसभा और कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव में जब मीडिया और विज्ञापन उद्योग के प्रतिनिधि रेट कार्ड लेकर उम्मीदवारों और पार्टियों के पास पहुंचे और समाचारों को बेचने का प्रस्ताव रखा तो देश में हलचल सी मच गई पत्रकारों और संपादकों के संगठनों मीडिया विनियामक चुनाव आयोग सूचना और प्रसारण मंत्रालय देश की संसद समेत कई मंचों पर इसे लेकर शोर मचा चुनाव के दौरान मीडिया के इस तरह बाजार में बिकने के लिए खड़े हो जाने और खबरों को लेकर आग लगाने को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतंत्र के लिए खतरा बताया गया और मांग उठने लगी इस पर अंकुश लगाया जाए विज्ञापन और खबर के बीच का अंतर खत्म हो जाने को लेकर गहरी चिंताएं जताई गई प्रेस परिषद की समिति ने इस बारे में जांच करके अपनी रिपोर्ट भी दे दी और उपचार भी बता दिया किया बीमारी कैसे दूर होगी।
मां मैं जा रही हूं..... शायद आसिफा के यही आखरी शब्द होंगे जब वह अपने घोड़ों को लेकर जंगल की ओर चराने के लिए गई होगी। कौन जानता था कि अब वह कभी भी लौट के नहीं आएगी? कौन जानता था कि उसके साथ एक पवित्र जगह पर इतना जघन्य अपराध किया जाएगा? एक 8 साल की मासूम बच्ची जिसको अभी अपना बायां और दायां हाथ तक पता नहीं था उसके साथ 8 दिनों तक एक पवित्र जगह पर ऐसा खेल खेला गया कि पूरी मानवता ही शर्मशार हो गई। वह मर ही गई थी लेकिन अभी कुछ बाकी था। अभी वह पुलिसवाला अपनी हवस को मिटाना चाहता था... रुको रुको अभी मारना नहीं मुझे भी हवस बुझानी है। यह खेल ही था जिसमें कुछ दरिंदे थे और एक मासूम बच्ची। जाहिर है कठुआ की खबर जैसे ही देश में फैली वह लोगों के रोंगटे खड़े कर गई। लेकिन इसके बाद भी कुछ तथाकथित हिंदुत्ववादी लोग उन दरिन्दों के बचाव में सड़कों पर उतर आए जिन्होंने 8 साल की मासूम बच्ची के साथ ड्रग्स देकर बलात्कार किया। शायद वह उस बच्ची में धर्म तलाश कर रहे थे जो अभी मंदिर मस्जिद को ही सही मायने में नहीं पहचान पायी थी। पहचानती भी कैसे अभी तो वह वोट देने के काबिल भी नहीं हुई थी। मैंने भी जब खबर देखी तो मन म
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