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कठुआ और उन्नाव बनाम समाज

मां मैं जा रही हूं.....
शायद आसिफा के यही आखरी शब्द होंगे जब वह अपने घोड़ों को लेकर जंगल की ओर चराने के लिए गई होगी। कौन जानता था कि अब वह कभी भी लौट के नहीं आएगी? कौन जानता था कि उसके साथ एक पवित्र जगह पर इतना जघन्य अपराध किया जाएगा? एक 8 साल की मासूम बच्ची जिसको अभी अपना बायां और दायां हाथ तक पता नहीं था उसके साथ 8 दिनों तक एक पवित्र जगह पर ऐसा खेल खेला गया कि पूरी मानवता ही शर्मशार हो गई। वह मर ही गई थी लेकिन अभी कुछ बाकी था। अभी वह पुलिसवाला अपनी हवस को मिटाना चाहता था... रुको रुको अभी मारना नहीं मुझे भी हवस बुझानी है। यह खेल ही था जिसमें कुछ दरिंदे थे और एक मासूम बच्ची। जाहिर है कठुआ की खबर जैसे ही देश में फैली वह लोगों के रोंगटे खड़े कर गई। लेकिन इसके बाद भी कुछ तथाकथित हिंदुत्ववादी लोग उन दरिन्दों के  बचाव में  सड़कों पर उतर आए जिन्होंने 8 साल की मासूम बच्ची के साथ ड्रग्स देकर बलात्कार किया। शायद वह उस बच्ची में धर्म तलाश कर रहे थे जो अभी मंदिर मस्जिद को ही सही मायने में नहीं पहचान पायी थी। पहचानती भी कैसे अभी तो वह वोट देने के काबिल भी नहीं हुई थी। मैंने भी जब खबर देखी तो मन में केवल और केवल एक ही तश्वीर बनी और वह थी बच्ची की।हमने धर्म तब जाना जब हिन्दू एकता मंच ने बलात्कारियों को बचाने के लिए एक रैली निकाली। भारतीय जनता पार्टी जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा पोस्टरों पर छपवाती है उसके मंत्री भी उस रैली में शामिल हुए।यह सब नजारा क्या कहना चाह रहा था मैं नहीं जानता लेकिन कोई भी इंसान उन बलात्कारियों का कैसे बचाव कर सकता है।जाहिर है इन लोगों की भी मानसिकता वही है जो उन बलात्कारियों की। वरना किसी भी इंसान का मस्तिष्क शायद ही ऐसी खबर सुनकर संतुलन में रह पाया हो कि एक 8 साल की बच्ची के साथ ड्रग्स व नशीली दवाएं देकर भूखे पेट बेहोशी की हालत में एक मंदिर के अंदर कई दिनों तक कई लोगों ने बारी बारी से बलात्कार किया। और एक को तो प्यास बुझाने के लिए मेरठ से फोन तक करके बुलाया गया । यदि आपके अंदर भी खबर सुनकर उबाल नहीं आया हो तो कहीं न कहीं आप भी ऐसी दिशा की ओर अग्रसर हैं जो समाज के लिए घातक। और इससे भी घातक कि आपको पता ही नहीं चल रहा कि आप किस अंधकार की ओर जा रहे हैं। महात्मा गांधी से लेकर अनेक विद्वानों ने जीवन यापन के लिए धर्म को एक प्रमुख आधार माना है परंतु जब ऐसी घटनाएं होती हैं तो सहसा कार्ल मार्क्स का वह कथन प्रासंगिक दिखाई पड़ता है जिसमें उन्होंने कहा था धर्म अफीम है यह हम सब को नशे में करके खत्म कर देगा।। हो भी यही रहा है लोग स्वयं के अंदर खत्म हो चुके हैं। वरना एक माँ बच्चों में कैसे फर्क कर सकती है।अपने बच्चे को जिसने एक दूसरी मां की लाडली को नशीली दवाई खिलाकर बलात्कार किया और फिर पत्थरों से मार दिया , उसको बचाने के लिए रिश्वत कैसे दे सकती है। यदि वह बलात्कारी इस जघन्य अपराध के पश्चात बचने में कामयाब भी हो जाता तब भी उसके साथ एक माँ कैसे रह सकती थी? क्या वह जीवन में कभी अपने आप को माफ कर पाती? शायद एक माँ तो कभी  भी नहीं।
                        हमारे एक मित्र ने मुझे संदेश भेजा जिसमें लिखा था उस समय क्या मोमबत्तियां नहीं बनती थीं जब कश्मीरी पंडितों की आबरू को लूटा गया। वह इस संदेश से क्या दिखाना चाह रहे हैं मुझे नहीं पता। लेकिन इतना जरूर है कि वो भी कहीं न कहीं संकीर्णता रूपी मानसिकता के शिकार हैं। उनके संदेश में एक धर्म के रूप में अलगाव की बात छुपी है। तभी याद आया कि जब कुछ साल पहले दिल्ली में निर्भया के साथ भी ऐसी ही कुछ घटना घटी थी तब कोई भी धर्म की आड़ में अपराधियों को बचाने के लिए सड़कों पर नहीं उतरा था। शायद इसलिए कि उस घटना में निर्भया भी हिन्दू थी और अपराधी भी हिन्दू थे।यदि इस घटना में अपराधी मुस्लिम और बच्ची हिन्दू होती और फिर मुस्लिम संगठन अपराधियों को बचाने के लिए निकलते तो हम क्या प्रतिक्रिया करते। शायद हम हिन्दू मुस्लिम के बीच मे एक गहरी खाई खोद रहे हैं जो हम सभी को उसी में गिरा के दफना देगी। और यह सच है वरना उस बच्ची को उस गाँव में दफनाने न दिया जाता यह कैसे हो सकता था? बहरहाल बच्ची को 7 किलोमीटर दूर दफनाया गया और साथ ही पीड़ित परिवार को सब कुछ छोड़ कर उस गांव से जाना भी पड़ा। मां का दर्द तो पहले से ही था अब वह इस ख़ौफ़ में भी है कि बच्ची की कब्र के साथ कुछ न कर दें ये दूषित मानसिकता के लोग।
                            जिस प्रकार हर घटना के बाद कुछ मंत्रियों को लगा दिया जाता है वाक संचालन के लिए उसी प्रकार इस घटना के कई दिन बाद आखिरकार राज्य मंत्री वी.के.सिंह का दिल पसीजा और बलात्कारियों को सख्त से सख्त सजा दिलाने का भरोसा दिलाया। उनका भरोसा ठीक भी है लेकिन उनकी ही पार्टी की उत्तर प्रदेश में सरकार है और उन्ही की पार्टी के विधायक पर बलात्कार का आरोप लगता है लेकिन फिर भी एक साल तक कोई भी रिपोर्ट नहीं लिखी जाती। पीड़िता दर दर भटकती है परंतु प्रशासन जस का तस बना रहता है। बताते चलें कि जिस विधायक पर आरोप लगा है वह उन्नाव का माना जाना बाहुबली नेता है और कई विधायकों पर उसका सीधा प्रभाव है। अब जब नेता जी का इतना प्रभाव है तो जाहिर है सूबे की सियासत में वह परिवर्तन का दम भी रखते हैं और जो आने वाले विधानपरिषद के चुनाव में दिखता भी।वरना क्या कारण हो सकता है कि योगी सरकार एक विधायक को न गिरफ्तार कर सके वो भी तब जब सुशासन की दुहाई देता उनका हर नेता घूमता फिरता है। इसी सुशासन के तहत हमारा कानून कहता है कि यदि किसी पर बलात्कार का आरोप लगाया जाए तो प्रथम दृष्टया पीड़िता को सही मानकर आरोपी को गिरफ्तार किया जाए। यहाँ गिरफ्तारी तो दूर की बात पीड़िता के पिता को ही जान से हांथ धोना पड़ा। हद तो तब हो गई जब बीजेपी के एक विधायक जी ने यह कहा कि कोई चार बच्चे की माँ से बलात्कार कैसे कर सकता है। अब विधायक जी को कौन बताये कि आज दिनांक 15 अप्रैल को अमेठी से जनसत्ता की खबर आई कि कुछ लोगों ने एक 5 साल की बच्ची के सामने उसकी माँ से बलात्कार किया। इन सब ख़बरों से ऐसा लगता है कि हम किस समाज का निर्माण कर रहे हैं लेकिन फिर याद आता है कि जब हमारे जनप्रतिनिधि स्वयं कब्र से निकाल कर बलात्कार की बात करने लगें तो फिर समाज के लोगों का क्या दोष?
                            
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महिला सशक्तिकरण के मायने!!
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Comments

  1. प्रिय सलमान जी -- आपका विचारोत्तेजक आलेख पढ़ा | हालाँकि आपने जिस दिन मेरे लेख पर अपना ब्लॉग पता छोड़ा था मैंने त्वरित ही इस मर्मस्पर्शी लेख को पढ़ लिया था , पर मैं व्यस्तता वश इस पर लिख ना सकी | मासूम बच्ची आसिफा के साथ हुए बर्बर दुराचार ने पूरे समाज और देश को हिलाकर रख दिया है | खेद की बात है की इस दुर्घटना को धर्म के चश्मे से देखा जा रहा है | बेटियों का कोई धर्म नहीं होता है | वे हर धर्म की सांझी होती है | मुझे कई बाते आपके लेख से पता चली | अगर वे सच हैं तो बहुत ही मर्मान्तक हैं और दुखद भी | मुझे लगता है आम लोग इस घटना को धर्म जाति से ऊपर हो देख रहे हैं | एक राजनीती और कुत्सित मानसिकता के लोग ही इसे धर्म की दृष्टि से देखते हैं | सभी धर्मों के लोगों की बच्चियां वाशियों के वहशीपन का शिकार हो रही हैं | पर साफिया के साथ बहुत ही बर्बरता हुई | एक कली सरीखी बेटी के साथ जो हुआ सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है , कि माँ -बाप पर क्या गुजरी होगी | सारी उम्र पश्चाताप की आग में जलते रहें कि उन्होंने बिटिया को घर के बाहर क्यों भेजा | अब सारी उमीद न्यायपालिका पर है | अगर वह निष्पक्ष न्याय कर दोषियों को सजा दिलाती है तो दिवंगता को न्याय मिलेगा | और हमारे जैसे लोग जिनके घरों में बेटियां हैं भी काफी हद तक राहत महसूस करेंगे | आपको विचार परक लेख के लिए शुभकामनाएं देती हूँ | सस्नेह --

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  2. रेनू जी आपका बहुत बहुत आभार।।
    हम सबको जाति, धर्म, क्षेत्रीयता जैसे मुद्दों से विमुख होकर सभ्य समाज के निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी।।
    नकारात्मक दिशा की ओर बढ़ते समाज को बचाना होगा।

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  3. जरुर सलमान -- कम से कम हम जैसे लेखन से जुड़े लोग तो इस दिशा में सही काम करें | दुःख है कि कथित सभ्य लोग इतनी बर्बरता क्र रहे हैं और उन्हें बचने वाले उनसे भी बड़े दोषी हैं | ऐसे लोगों का आचरण शुरू से ही संदिग्ध होता है | सबसे पहले परिवार को उनका बहिष्कार करना चाहिए |

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  4. Renu जी आपका सुझाव परिवार से बहिष्कार यदि लोग अपने व्यक्तिगत जीवन में जोड़ दें तो शायद ज्यादा देर नहीं लगेगी एक सभ्य समाज के निर्माण में।।

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  5. सलमान जी आपके लेख ने दिल को भीतर तक छू दिया

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    1. राधा जी लेख पर प्रतिक्रिया देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार।।

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  6. Very nice article

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  7. सलमान जी आपके लेख ने अंतर्मन को झिंझोड़ कर रख दिया शायद भगवान इन हैवानों के सीने में दिल बनाना भूल गया इसलिए इन्होंने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी यहां बात किसी धर्म विशेष की नही है
    एक बेटी की सुरक्षा की है सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए

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    1. आपका बहुत बहुत आभार Anuradha जी।
      हम आपको मिलके ही ऐसे लोगों के खिलाफ आवाज उठानी होगी जो धर्म को सहारा बना कर इन्शानियत को शर्मसार कर रहे हैं।

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